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आखिर क्यों लटकी हैं विधान परिषद की 12 नियुक्तियां?

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मुंबई, विधान परिषद में 12 सदस्यों के मनोनयन का मामला महीनों से अटका हुआ है। राज्य सरकार ने बीते बरस 5 नवंबर को 12 नाम राज्यपाल को भेजे थे। सात महीने होने को आए हैं। लेकिन हर मामले में तत्काल सक्रियता दिखाने वाले राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी ने इस प्रस्ताव पर कोई फैसला नहीं लिया है। राजनीति के जानकार मानते हैं कि महाविकास आघाडी सरकार ने पिछले साल 5 नवंबर को राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को मनोनयन के लिए जो 12 नाम भेजे थे, उनमें राजनीति, कला, सामाजिक, सहकारिता, साहित्य आदि क्षेत्रों से जुड़े लोगों के नाम थे।
हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
हाईकोर्ट ने भी स्पष्टीकरण मांगा है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने इस मुद्दे पर कोई निर्णय क्यों नहीं लिया है। जस्टिस एसजे काथावाला और जस्टिस एसपी तावड़े की खंडपीठ ने हाल ही में राज्य सरकार से जवाब मांगा कि राज्यपाल 6 नवंबर, 2020 को किए गए नामांकन पर कब विचार करेंगे और कब मामले का निपटारा करेंगे। लेकिन राज्य सरकार तो खुद भी इंतजार कर रही है। संभव है कि आने वाले दिनों में या तो सभी नियुक्तियां होंगी, या कुछ होंगी और कुछ रुक जाएंगी, या फिर टकराव बढ़ेगा।
बीजेपी का दांव
12 प्रस्तावित नामों में सत्तारूढ़ महाविकास आघाडी में शामिल तीनों दलों के चार-चार लोग हैं। बीजेपी का कोई नहीं है। राजनीति के जानकार बताते हैं कि महाराष्ट्र में बीजेपी अब भी इस उम्मीद में है कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्ववाली महाविकास आघाडी सरकार कभी भी गिर सकती है या इसे बहुत आसानी से गिराया जा सकता है। ऐसे में, बीजेपी के नेतृत्व में ही अगली सरकार बनेगी। उस वक्त बीजेपी इन बारह खाली सीटों पर अपने लोगों को मनोनीत करवा सकेगी, ताकि ऊपरी सदन विधान परिषद में भी उसका बहुमत रहे। माना जाता है कि बीजेपी इन 12 सीटों को अपने हाथ में इसलिए भी रोके रहना चाहती है, ताकि अगर सरकार बने, तो इन सीटों पर मनोनयन के नाम पर समर्थन के लिए कुछ लोगों या दलों से सौदेबाजी भी की जा सके।
अभूतपूर्व है मामला
महाराष्ट्र के राजनीतिक इतिहास में इतने लंबे समय तक विधान परिषद में सदस्यों के मनोनयन के मामले को लटकाए रखने का संभवतया यह पहला मामला है। दो महीने पहले का मामला देखें, तो बिहार में सरकार ने जिन लोगों के नाम प्रस्तावित किए उनकी नियुक्ति तत्काल कर दी गई। लेकिन महाराष्ट्र में इतने लंबे समय से अटकाए जाने को आश्चर्य से देखा जा रहा है। हालांकि संविधान में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि राज्यपाल को किसी निर्धारित समय के भीतर सरकार की सिफारिशों पर फैसला करना ही होगा। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं हो जाता कि राज्यपाल को सरकार की सिफारिशों को अनंतकाल तक लटकाए रखने का अधिकार मिल गया हो।

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