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कोच राहुल द्रविड़ बोले- कभी वीरेंद्र सहवाग जैसा नहीं बन सकता था, जानें क्यों कहा ऐसा

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भारतीय क्रिकेट टीम के वर्तमान मुख्य कोच राहुल द्रविड़ अपने खेल के दिनों में सबसे प्रतिभाशाली बल्लेबाजों में से एक थे। भारत के पूर्व कप्तान ने 1996 में टेस्ट और वनडे क्रिकेट में डेब्यू किया था। टेस्ट में द्रविड़ ने 1,3288 और वनडे में 10,889 रन बनाए थे। भारत के महान बल्लेबाजों में शुमार द्रविड़ को भी कभी दबाव झेलना पड़ा था। हालांकि, हर मौके पर द्रविड़ ने शानदार वापसी की और खूब रन बनाए। गेंदबाज उनका विकेट लेने के लिए तरस जाते थे।अब हाल ही में एक पॉडकास्ट ‘इन द जोन’ में द्रविड़ ने खुलासा किया है कि कैसे वह किसी मैच के बाद दबाव से हटने की कोशिश करते थे और जो चीजें मैदान पर हुईं उसे भूलने की कोशिश करते थे। उन्होंने बताया कि काफी कोशिश के बाद ऑन द फील्ड हुई चीजों को वह मैदान से बाहर जाकर नहीं सोचने की क्षमता आई। इससे उन्हें मानसिक रूप से काफी मदद मिली थी। इस पॉडकास्ट में भारत के पहले व्यक्तिगत ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता अभिनव बिंद्रा भी शामिल हुए। इस दौरान द्रविड़ ने कहा- अगर मैं अपने करियर को पीछे मुड़कर देखता हूं, तो मेरी मानसिक ऊर्जा मेरे लिए गेमचेंजर साबित हुई और इसी की वजह से मेरा करियर इतना लंबा चल सका। साथ ही मेरे प्रदर्शन में भी सुधार आया। द्रविड़ ने कहा- मैं बहुत सारी ऊर्जा खर्च करता था। जब मैं नहीं खेल रहा होता तो भी अपने खेल के बारे में सोच रहा होता था, उस पर चिंतन कर रहा था और बेवजह चिंतित होता था। समय के साथ मैंने सीखा कि यह वास्तव में मेरे खेल में मदद नहीं कर रहा था या मुझे बेहतर खेलने में मदद नहीं कर रहा था। मुझे इससे बाहर निकलने के लिए कुछ नया करने की जरूरत थी और क्रिकेट के बाहर का जीवन को तराशने की जरूरत थी। द्रविड़ ने वीरेंद्र सहवाग को लेकर बयान दिया है। उन्होंने कहा कि वह कभी भी सहवाग जैसा नहीं बन सकते थे। द्रविड़ ने कहा- मैं कभी भी वीरेंद्र सहवाग की तरह नहीं बनने वाला था। सहवाग के लिए मैदान के बाहर निकलते ही खुद को रिलैक्स करना आसान था, क्योंकि उनकी पर्सनैलिटी शानदार थी। मैं उस स्तर तक कभी नहीं पहुंचने वाला था, लेकिन निश्चित रूप से मैंने खतरे को पहचाना। मुझे पता था कि मुझे बेवजह चिंतित हो जाने से बाहर निकलने की जरूरत है। इसके लिए मुझे मानसिक पक्ष को मजबूत करना था। द्रविड़ ने कहा- मानसिक पक्ष को मजबूत करना आपके लिए उतना ही जरूरी है जितना एथलीट के लिए जिम और प्रैक्टिस सेशन। यदि आपने सब किया लेकिन मानसिक रूप से खुद को स्विच ऑफ करने में असमर्थ रहे तो आपके पास खेल खेलने के लिए पर्याप्त ऊर्जा नहीं होगी। एक बार जब मैंने इस चीज को जान लिया, फिर मैंने प्रयास करना शुरू कर दिया। इससे मुझे ऑफ द फील्ड काफी मदद मिली।

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