अतीक अहमद और अशरफ के प्रयागराज में हुई हत्या के बाद अब कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो यही उठ रहा है कि इतने दुर्दांत अपराधी को पुलिस जब अपनी सुरक्षा घेरे में अस्पताल लेकर जा रही थी तो क्या उसका सुरक्षा चक्र न के बराबर था। अगर सुरक्षा घेरा मजबूत होता तो मीडिया भी अतीक और अशरफ के पास तक न पहुंच पाती। सवाल यह भी उठ रहा है कि जब अतीक अहमद का नेटवर्क खुद पुलिस ने पाकिस्तान और आईएसआई से जोड़कर देख रही थी तो इतने दुर्दांत अपराधी की सुरक्षा के लिए क्या अन्य सुरक्षा एजेंसियों के जवानो और कमांडो को नहीं लगाया जाना चाहिए था। यही नहीं सवाल यह भी बड़ा उठ रहा है कि आखिर ऐसे दुर्दांत अपराधी का मेडिकल क्या पुलिस की कस्टडी में अस्पताल के बाहर किसी सुरक्षित जगह पर नहीं कराया जा सकता था। इन सबसे इतर जब भारतीय जनता पार्टी के नेताओं की ओर से खुद यह अंदेशा जताया जा रहा था कि अतीक अहमद की हत्या कोई भी व्यक्ति मीडिया वाला बन कर कर सकता है। तो कानून व्यवस्था को दुरुस्त रखने की बजाय माहौल बिगाड़ने की इस तरह की लापरवाही आखिर किस की ओर से की गई। माफिया सरगना अतीक अहमद और उसके दुर्दांत अपराधी भाई अशरफ की मौत का लाइव वीडियो समूची दुनिया ने देखा। इस पूरे घटनाक्रम पर देशभर में प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई। राजनीतिक पार्टियों ने उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था पर सवालिया निशान उठाते हुए इस पूरे घटनाक्रम को ही संदिग्ध करार दे दिया। कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद सवाल उठाते हुए कहते हैं कि आखिर हमले का इनपुट और पुलिस कस्टडी में बाकायदा मीडिया बाइट की व्यवस्था किसने कराई। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश को अपराध मुक्त किए जाने का दावा किया जाता है, लेकिन पुलिस की सुरक्षा में दिनदहाड़े उमेश पाल की हत्या और पुलिस की अभिरक्षा में माफिया डॉन और पूर्व सांसद अतीक अहमद और उसके भाई की हत्या हो जाती है। क्या वाकई में उत्तर प्रदेश अपराध मुक्त हो गया है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इस तरीके की घटना पर पलटवार करते हुए कहा कि किसी भी सियासी मकसद से कानून के राज में न्यायिक प्रक्रिया से खिलवाड़ करना लोकतंत्र के लिए सही संदेश नहीं है। उन्होंने कहा जो भी ऐसा कर रहा है या उनको संरक्षण दे रहा है उस पर भी शक्ति से कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए। अतीक अहमद की और अशरफ की हत्या को लेकर चर्चा इस बात की सबसे ज्यादा हो रही है कि आखिर पुलिस ने इतने दुर्दांत अधिकारी को खुलेआम उसके ही इलाके में बगैर कड़ी सुरक्षा के ले जाने की जहमत क्यों उठाई। सवाल इसी बात पर उठ रहे हैं कि क्या जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों को इस बात का बिल्कुल अंदेशा नहीं था कि अतीक अहमद को अस्पताल ले जाते वक्त कोई बड़ी वारदात हो सकती है।
उत्तर प्रदेश के रिटायर्ड एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि जब इतना दुर्दांत अपराधी मेडिकल के लिए ले जाया जाता तो उसको कई चक्र की सुरक्षा घेरे में लेकर जाया जाता है। स्थानीय पुलिस से लेकर पैरामिलिट्री फोर्स तक की भी आवश्यकता पड़ने पर उनको सुरक्षा चक्र में शामिल किया जाता है। उनका कहना है जिस तरीके की वीडियो सामने आई है उससे स्पष्ट पता चलता है कि पुलिस ने इस पूरे मामले में जबरदस्त लापरवाही की है और उनकी मंशा पर सवालिया निशान खड़े होते हैं। आखिर मीडिया को यह मौका कैसे मिला कि वह इतने बड़े दुर्दांत अपराधी के पास जाकर सवाल-जवाब कर सके। वे कहते हैं कि जब आप इस तरीके के घटनाक्रम को वीडियो में देखते हैं तो पुलिस की मंशा पर शक होना लाजिमी हो जाता है। वो कहते हैं अतीक अहमद और अशरफ क जब गोली मारकर हत्या की गई तो उसके नजदीकी घेरे में सबसे पहले मीडिया वाले थे और पुलिसकर्मी उससे दूर खड़े हुए थे। सवाल उठाते हुए कहते हैं कि जब इतनी बड़ी घटना हुई तो क्या क्रॉस फायरिंग नहीं हो सकती थी। सवाल सिर्फ यही नहीं उठाए जा रहे हैं कि अतीक अहमद के साथ पुलिस का कितने चक्रीय सुरक्षा घेरा था। सवाल इस बात पर भी उठाए जा रहे हैं कि जब भारतीय जनता पार्टी के नेता ही पहले से इस बात को लेकर चिंता जाहिर कर रहे थे कि कहीं अतीक अहमद की हत्या कोई व्यक्ति मीडिया कर्मी बनकर ही ना कर दे। भारतीय जनता पार्टी के नेता तेजेंद्र सिंह बग्गा ने तो बाकायदा ट्वीट करते हुए सवाल भी उठाया था कि ऐसे हाई प्रोफाइल अपराधियों के काफिले के साथ मीडिया आखिर किस की इजाजत के साथ चल रहा है। रिटायर्ड पुलिस अधिकारी का कहना है कि जब बग्गा को अंदेशा था तो सवाल उठता है कि आखिर पुलिस को इस बात का अंदेशा क्यों नहीं हुआ कि कोई भी गैंगस्टर मीडिया का रूप लेकर अपराधियों को गोली मार सकता है। इस मामले में एक सवाल और भी उठता है कि आखिर आधी रात को ऐसी क्या जरूरत पड़ी कि अशरफ और अतीक एक बार फिर से मेडिकल कराने अस्पताल ले जाना पड़ा। इस पूरे घटनाक्रम पर सवालों की झाड़ियां खत्म नहीं हो रही हैं। बड़ा सवाल तो यह भी उठ रहा है कि आखिर इतने खतरनाक अपराधी को बार-बार अस्पताल ही क्यों ले जाकर मेडिकल कराया जा रहा था। सामाजिक संस्था से जुड़े अखिलेश तोमर कहते हैं कि पहले भी ऐसे मामलों में देखा गया है कि बड़े गैंगस्टर और माफियाओं की जांच मेडिकल की टीम बुलाकर की जाती है। जब अतीक अहमद और अक्षरा के मारे जाने का अंदेशा पहले से ही चल रहा था तो फिर मेडिकल की टीम बुलाकर क्यों नहीं जांच कराई गई।
प्रयागराज के जिस कॉल्विन कॉलेज में अतीक को गोली मारी गई उसी अस्पताल की सीएमएस नाहिदा सिद्दीकी कहती है कि उनको अतीक अहमद और अशरफ को लाए जाने की पहले से कोई सूचना नहीं दी गई थी। वो कहती हैं कि पुलिस ऐसे दुर्दांत अपराधियों को मेडिकल की टीम बुलाकर जांच करवा सकती थी। उनका उनका कहना है पुलिस जहां चाहती वहां उसका मेडिकल चेकअप हो सकता था। पुलिस विभाग से रिटायर्ड एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी कहते हैं कि अक्सर ऐसे दुर्दांत अपराधियों की सुरक्षा के चलते मेडिकल की टीम को सुविधानुसार सुरक्षित जगह पर बुलाकर अपराधियों का मेडिकल चेकअप पहले भी कराया जाता रहा है। अतीक और अशरफ मामले में भी इस तरीके का मेडिकल चेकअप कराया जा सकता था।
सवाल सिर्फ यही नहीं खत्म होते हैं। सवाल इस बात को लेकर के भी उठाया जा रहा है कि आखिर बेखौफ अपराधी कैसे माफिया अतीक अहमद अशरफ को गोलियां मारते रहे और पुलिस का घेरा इन्हीं गोलियों के साथ तितर-बितर होता रहा। समाजवादी पार्टी के नेता आईप सिंह कहते हैं कि प्रदेश में किसी की भी हत्या किसी भी वक्त हो सकती है। आईपी सिंह कहते हैं कि पुलिस कस्टडी में हत्या हो रही है। जेलों में हत्याएं हो रही हैं। और तो और अब मीडिया के कैमरों पर भी बगैर किसी डर के अपराधी हत्या कर रहे हैं। वो कहते हैं कि फिर न्यायपालिका का क्या मतलब अगर फैसला खुद ही करना है। प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि अशरफ और अतीक अहमद को जब अस्पताल ले जाने की सूचना मिली तो वह सबसे पहले वहां पर पहुंच गए। पुलिस के सुरक्षा घेरे में अतीक अहमद और अशरफ को अस्पताल के अंदर ले जाया जा रहा था। क्योंकि उनकी टीम पहले भी साबरमती से इलाहाबाद के रास्ते में अतीक अहमद की पुलिस गाड़ियों के साथ ही आई थी और वह अतीक से बात भी कर रहे थे। प्रयागराज अस्पताल में भी इस तरीके की बातचीत करने की कोशिश भी की जा रही थी कि अचानक उस पर ताबड़तोड़ गोलियों की बरसात होने लगी। मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि इतने दुर्दांत अपराधी के लिए पुलिस का जो सुरक्षा घेरा था, वह बिल्कुल नाकाफी था। लोगों का कहना है कि आशंका तो इस बात की लगाई जा रही थी कि बातचीत के दौरान कोई भी अतीक अहमद को गोली मार सकता है और आखिरकार वही हुआ।
क्या पुलिस का सुरक्षा चक्र न के बराबर था? तभी तो अतीक-अशरफ से बात कर पा रही थी मीडिया
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