केंद्र सरकार स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, ड्रापआउट रोकने, उच्च शिक्षा में दाखिले की राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा में सबको समान मौका देने की तैयारी कर रही है। इसके लिए देश के सभी 60 स्कूल बोर्ड की परीक्षा पद्धति, मूल्यांकन, पाठ्यक्रम एक समान करने के लिए कॉमन असेसमेंट प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। केंद्र और राज्यों के शिक्षा सचिव की बैठक के बाद अब आठ राज्यों के बोर्ड परिणाम का अध्ययन होगा। इसके आधार पर नवंबर में बदलाव का पहला चरण शुरू हो जाएगा। खास बात यह है कि स्कूली शिक्षा में हर साल करीब 58 लाख छात्र 10वीं और 12वीं कक्षा के बाद पढ़ाई छोड़ देते हैं। शिक्षा मंत्रालय के सचिव संजय कुमार ने बताया कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के तहत सभी 60 बोर्ड की परीक्षा पद्धति, मूल्यांकन और पाठ्यक्रम एक जैसा करने की तैयारी है। इसके लिए सभी 60 बोर्ड का वर्ष 2022 के 10वीं और 12वीं कक्षा के परीक्षा परिणाम का अध्ययन किया गया था। सामने आया है कि केंद्र और राज्यों के कुल 40 नियमित बोर्ड है, जिसमें से आठ ओपन स्कूल बोर्ड हैं। जबकि आठ राज्यों के 10 नियमित और ओपन स्कूल बोर्ड में 10वीं और 12वीं कक्षा के लिए अलग-अलग परीक्षा पद्धति और मूल्यांकन नियम है। इसमें आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक,केरल, ओडिशा,मणिपुर, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना शामिल हैं। इसी कारण इनके सेकेंडरी बोर्ड यानी 12वीं कक्षा और हाई स्कूल यानी 10वीं कक्षा के रिजल्ट में बहुत अंतर है। वर्ष 2012 में देश में कुल 50 बोर्ड थे और 2022 तक इनकी संख्या 60 हो गयी है। सभी राज्यों के स्कूल बोर्ड में अलग नियम, मापदंड होने के कारण छात्रों को सबसे अधिक नुकसान होता है। किसी राज्य में अच्छे अंक मिलते हैं तो कहीं रिजल्ट बेहद नीचे हैं। अध्ययन में सामने आया है कि देश के सभी नौ नेशनल ओपन बोर्ड का रिफार्म किया जाता है तो फिर स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव है। दरअसल, 12वीं कक्षा के बाद 23.4 लाख छात्र बीच में पढ़ाई छोड़ (ड्राॅपआउट) देते हैं। वहीं, 18.6 लाख फेल और 4.8 लाख छात्र परीक्षा में शामिल ही नहीं होते हैं। दरअसल, 11 राज्यों में 18 लाख छात्र ड्रॉपआउट होते हैं। इसमें उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 5.4 लाख छात्र हैं। जबकि बिहार में 3.4 लाख,मध्य प्रदेश 1.7 लाख,कर्नाटक 1.6 लाख, आंध्र प्रदेश 1.5 लाख,तमिलनाड़ु 1.4 लाख, तेलंगाना 1.2 लाख, पश्चिम बंगाल एक लाख, महाराष्ट्र 95 हजार, केरल आठ हजार, गुजरात सात हजार छात्र पढ़ाई छोड़ देते हैं। इसलिए यदि ओपन बोर्ड को रिफार्म किया जाता है तो ड्रॉपआउट वाले छात्रों को शिक्षा के साथ कौशल विकास से जोड़ा जा सकता है।
जेईई, नीट, सीयूईटी में दिक्कत
इंजीनियरिंग में जेईई, मेडिकल में नीट और विश्वविद्यालयों में स्नातक दाखिले के लिए अब सीयूईटी यूजी से दाखिले हो रहे हैं। ऐसे में जब देशभर में 60 स्कूल बोर्ड में अलग-अलग पाठ्यक्रम, परीक्षा पद्धति और मूल्यांकन होगा तो छात्रों को सबसे अधिक दिक्कत आएगी। यदि सभी बोर्ड में एक समान नियम होंगे तो छात्रों को तैयारी के लिए कोचिंग का सहारा नहीं लेना होगा। क्योंकि जेईई, नीट, सीयूईटी समेत अन्य स्नातक दाखिले की राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षाओं में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के तहत ही प्रश्न पूछे जाते हैं।