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पासबान-ए-अदब की ओर से मुंबई में अनुभूति का सफल आयोजन, देश के जाने माने हिंदी साहित्यकारों ने कविता और गजलें सुनाई।

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मुंबई: संवाददाता। रविवार को पासबान-ए-अदब संस्था की ओर से मुंबई में आयोजित अनुभूति 2019 (अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन ) के संस्करण में सोफिया कालेज का एडोटोरीयम तालियों की गडगडाहट और वाहवाही की शाबाशी से गूंजता रहा। दिन भर चले इस प्रोग्राम में चार सेशन हुए। देर शाम शुरू हुए हिंदी श्रेष्ठ साहित्य के पाठ में देश के जाने माने कवियों व शायरों ने ऊनी कविताएं और गजलें कहीं। आयोजन में लाइफ टाइम अचीवमेंट से सम्मानित उदय प्रताप सिंह ने सुनाया,न मेरा है न तेरा है, ये हिन्दुस्तान सबका है,नहीं समझी गई ये बात,तो नुकसान सबका है। हज़ारों रास्ते खोजे गए उस तक पहुँचने के,मगर पहुँचे हुए ये कह गए भगवान सबका है। जो इसमें मिल गईं नदियाँ वे दिखलाई नहीं देतीं,महासागर बनाने में मगर एहसान सबका है। तो वही दीक्षित दनकौरी ने कुछ इस अंदाज में तालियां बटोरी,, आग सीने में दबाए रखिए,लब पे मुस्कान सजाए रखिए।जिससे दब जाएँ कराहें घर की,कुछ न कुछ शोर मचाए रखिए। गै़र मुमकिन है पहुँचना उन तक,उनकी यादों को बचाए रखिए। जाग जाएगा तो हक़ मांगेगा,सोए इन्सां को सुलाए रखिए। वही महाराष्ट्र पुलिस के आईजी व संस्था के अध्यक्ष कैसर खालिद ने सुनाया,”यह है दौर-ए-हवस मगर ऐसा भी क्या,आदमी कम से कम आदमी तो रहे”,इस पर लोगों की खूब तालियां बटोरी। साथ ही डॉ. सचिदानंद जोशी, रमेश शर्मा, संदीप नाथ, हस्तीमल हस्ती, माया गोविन्द,अतहर शकील, संतोष सिंह जैसे देश भर के लोकप्रिय और सुप्रसिद्ध कवी साहित्यकार अपनी उत्कृष्ठ हिंदी रचनाओं से लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिए।
आयोजन के मुख्यतिथि महाराष्ट्र राज्यपाल भगत सिंह कोशियारी को सम्मानित के साथ कविता पाठ का आगाज हुआ। जिसके उपरांत बॉलीवुड के प्रसिद्ध कॉमेडियन राजपाल यादव सहित सभी कवियों का स्वागत किया गया।
कार्यक्रम के आयोजन में ओपन माइक,चर्चा,स्टोरीबाजी, कवी कलम और हम आयोजन चला। जिसके अंतर्गत युवा कवियों को प्रोत्साहन देने के लिए उनकी मूल रचनाओं के प्रस्तुतीकरण ‘ओपन माइक’ के द्वारा दिया गया। कई महाविद्यालयों के भाग लेने वाले इन विद्यार्थीयों की रचनाओं के मूल्यांकन के बाद सर्वश्रेष्ठ रचना वालों छात्र को पुरस्कृत भी किया गया।
वही महाराष्ट्र पुलिस के आईजी संस्था के अध्यक्ष कैसर खालिद ने कहा कि पासबाने अदब और जश्ने अदब संस्थाओं के जरिए पूरे भारत में हिन्दी -उर्दू लिटरेचर सहित भारतीय भाषाओं को प्रमोट करने में जुटे हुए।
“किसके आगे दिल को खोलें,कौन सुनेगा किस को बोलें,किसे सुनाएं कड़वा किस्सा,बांटे कौन दर्द में हिस्सा?कहने भर को लोकतंत्र है,यहां लुटेरा ही स्वतंत्र है,
खाद नहीं बन पाई खादी,पनप नहीं पाई आज़ादी..यह सुना पदमश्री से सम्मानित कवि अशोक चक्रधर ने महफिल में खूब दाद बटोरी”।
“न मेरा है न तेरा है, ये हिन्दुस्तान सबका है,नहीं समझी गई ये बात ,तो नुकसान सबका है….
किसके आगे दिल को खोलें,कौन सुनेगा किस को बोलें,किसे सुनाएं कड़वा किस्सा बांटे कौन दर्द में हिस्सा….?
यह है दौर-ए-हवस मगर ऐसा भी क्या, आदमी कम से कम आदमी तो रहे….”

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