लगातार बढ़ती महंगाई के बीच रेपो दर में बढ़ोतरी से होम लोन महंगा हो गया है। महंगाई पर काबू पाने के लिए आरबीआई ने मई से अब तक रेपो दर में 0.90 फीसदी की बढ़ोतरी की है। आगे भी नीतिगत दर में और वृद्धि की जा सकती है। केंद्रीय बैंक के रेपो दर में बढ़ोतरी के बाद बैंकों ने भी होम लोन पर ब्याज दरों में इजाफा किया है। रेपो दर में मई और जून की बढ़ोतरी के बाद होम लोन की न्यूनतम ब्याज दरें बढ़कर अब 7.7 फीसदी हो गई है। इसके साथ ही आपके होम लोन की ईएमआई और अवधि पहले से बढ़ गई है। ऐसे में जानें ब्याज दरों में बढ़ोतरी के बाद आपके लिए फिक्स्ड ब्याज दर पर होम लोन लेना बेहतर है या फ्लोटिंग दर पर। मान लीजिए, अभी आपने 20 साल (240 महीने) के लिए 7 फीसदी की ब्याज दर पर 50 लाख रुपये का होम लोन लिया है। इसके लिए हर महीने आपको 38,765 रुपये की ईएमआई देनी पड़ती है। अब ब्याज दर बढ़कर 7.5 फीसदी होने पर अगर आप ईएमआई नहीं बढ़वाना चाहते हैं तो आपकी लोन अवधि करीब 23 महीने और बढ़ जाएगी। इसी तरह, 8.5% की ब्याज दर पर आपके लोन की अवधि करीब 10 साल बढ़ जाएगी।
कमाई के आधार पर ले सकते हैं फैसला
भारतीय रिजर्व बैंक के मई और जून में दो बार रेपो दर बढ़ाने के बाद भी अभी काफी सारे बैंक हैं जो फिक्स्ड या फ्लोटिंग दर पर कर्ज दे रहे हैं। यह आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप किस दर पर कर्ज लेना चाहते हैं। हालांकि समय के हिसाब से दोनों दरें अपनी-अपनी जगह पर सही हैं। आपकी जैसी कमाई और जैसी बचत होगी, उसी आधार पर इन दोनों में से एक विकल्प को आपको चुनना चाहिए। आगे जिस तरह का माहौल है, ऐसे में कुछ ब्याज दरें नीचे जाने की कोई उम्मीद नहीं है। दरअसल, फिक्स्ड रेट वाले होम लोन से दरों में कमी या बढ़ोतरी से सुरक्षा मिलती है। हालांकि, अगर यह पहले से ही फ्लोटिंग रेट वाले होम से अधिक ब्याज पर तय किया गया है तो फिक्स्ड रेट का कोई लाभ नहीं मिलता है। फिक्स्ड दर वाले होम लोन का लाभ तभी मिलता है, जब महंगाई के कारण फ्लोटिंग दरों में बहुत अधिक बढ़ोतरी हो चुकी होती है।
फिक्स्ड ब्याज दर : इसमें होम लोन की पूरी अवधि के दौरान ब्याज दर एक समान रहती है। ईएमआई कम या ज्यादा नहीं होती है। फ्लोटिंग ब्याज दर : इसमें मार्केट की स्थिति के मुताबिक ब्याज दर कम या ज्यादा होती रहती है। अगर ब्याज दर को बेस और फ्लोटिंग रेट के साथ लिंक किया गया होता है तो बेस रेट में परिवर्तन होने पर फ्लोटिंग दर भी बदल जाती है। ऐसे में आपके होम लोन की अवधि बढ़ जाती है या फिर आपको पहले से ज्यादा ईएमआई चुकानी पड़ती है।