नई दिल्ली
बंगाल की सीएम और टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी दिल्ली आई हुई हैं। वह कई विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मुलाकात कर भाजपा को घेरने की स्ट्रैटेजी बनाएंगी। हालांकि, खास बात यह है कि उनके एजेंडे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात नहीं है। इस दौरान दीदी बीजेपी, कांग्रेस और जेडीयू के तीन नेताओं को अपने दल में शामिल कर रही हैं। इनमें कीर्ति आजाद, अशोक तंवर और पवन शर्मा शामिल हैं।
इसके पहले जुलाई में जब ममता आई थींं तो उन्होंने सोनिया गांधी सहित विपक्ष के तमाम नेताओं से मुलाकात की थी। इनमें आम आदमी पार्टी के संयोजक व दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल शामिल थे। हालांकि, तब से स्थितियों में काफी बदलाव हो चुका है। ममता खुलकर कांग्रेस की नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठा चुकी हैं।
यह बात कई मायनों में अहम है। कारण है कि 2024 में लोकसभा चुनाव से कांग्रेस और टीएमसी दोनों विपक्ष को लामबंद करने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अपने-अपने स्तर पर उनकी कोशिशें जारी हैं। हालांकि, यह तय नहीं है कि विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा। राहुल गांधी, ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल या कोई और? फिलहाल अभी हालात ऐसे हैं जिसमें साफ दिख रहा है कि ममता किसी की छतरी के नीचे जाने के बजाय सबको अपनी छतरी के नीचे लाना चाहती हैं।
ममता क्यों हुई हैं इतनी आक्रामक?
दरअसल, बंगाल में भाजपा को पटखनी देने के बाद ममता बनर्जी का मनोबल सातवें आसमान पर है। उनके आक्रामक होने के पीछे यही बड़ी वजह है। वह किसी भी हाल में अब बंगाल में सिमटकर नहीं रह जाना चाहती हैं। तृणमूल कांग्रेस को ममता नेशनल लेवल पर ले जाना चाहती हैं। भवानीपुर उपचुनाव में रिकॉर्डतोड़ मतों से जीत ने भी उन्हें आत्मविश्वास से भर दिया है। उन्हें लगता है कि भाजपा को सत्ता से हटाने के लिए जिस आक्रामकता की जरूरत है, वह कांग्रेस में नहीं है।
कांग्रेस की क्षमता पर खुलकर उठाया था सवाल
हाल में इसे लेकर ममता ने पार्टी के मुखपत्र ‘जागो बांग्ला’ में एक लेख भी लिखा था। इसमें उन्होंने साफ कहा था कि भाजपा को सत्ता से हटाने की कांग्रेस के बस की बात नहीं है। यह काम सिर्फ तृणमूल कांग्रेस कर सकती है। उन्होंने यह भी कहा था कि कांग्रेस ने दो लोकसभा चुनाव में लोगों का विश्वास तोड़ा है। भाजपा के खिलाफ लड़ने में वह पूरी तरह नाकाम साबित हुई है। यह बात अब साबित हो चुकी है। पूरे देश ने अब टीएमसी से आस लगा ली है।
मुश्किल है ममता की चाहत पूरी होना
ममता चाहती हैं कि तमाम विपक्षी दल एकजुट होकर 2024 के लिए एक मोर्चा बनाएं। इनमें कांग्रेस, टीएमसी, एनसीपी, शिवसेना, एसपी, बीएसपी और आरजेडी जैसे तमाम विपक्षी दल एक साथ आएं। हालांकि, जमीन पर हालात अलग हैं।
हाल में शिवसेना ने ही इसकी बानगी दे दी थी। पार्टी के मुखपत्र सामना में अपने साप्ताहिक कॉलम में शिवसेना नेता संजय राउत ने टीएमसी और आप जैसे दलों को खेल बिगाड़ू करार दिया था। राउत ने विपक्ष के नेतृत्व के मुद्दे पर खींचतान के बीच राहुल गांधी को ही इसके लिए एकमात्र विकल्प बताया था। इस समय शिवसेना महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार चला रही है। राउत ने संकेत दिया था कि अगर टीएमसी और आप जैसे दल कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं बने तो इसका फायदा भाजपा को होगा। इससे पूरी चुनावी गुणा-गणित पर पानी फिर जाएगा।
सोनिया से न मिलने का कहीं यही तो कारण नहीं
पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा, गोवा और अब दिल्ली में जिस अंदाज में ममता बनर्जी भाजपा के खिलाफ अभियान चलाने में जुटी हुई हैं, उससे तो यही लग रहा है कि ममता राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को घेरना चाहती हैं। यूं कहे कि मुख्य विपक्षी पार्टी की जगह लेना चाहती हैं। दिल्ली में आना और सोनिया गांधी से मुलाकात न करने के पीछे कहीं यही तो कारण नहीं है। खुलेआम कांग्रेस की खिंचाई कर रही ममता से क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी भी मिलना चाहेंगे? इसका मतलब निकाल लेना बहुत मुश्किल नहीं है।
टीएमसी सुप्रीमो की राष्ट्रीय स्तर पर सक्रियता को लेकर भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि बंगाल में सरकार चलाने वाले दलों की पुरानी बीमारी रही है। वे प्रदेश के लोगों के हित में काम करने की बजाय राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति करने की कोशिश करने में लग जाते हैं। लेफ्ट फ्रंट की सरकार के दौर में भी 34 वर्षों तक सीपीएम नेता दिल्ली में यही किया करते थे, अब ममता बनर्जी भी यही कर रही हैं।
उन्होने आरोप लगाया कि राज्य में अपनी नाकामियों को छुपाने के लिए ममता बनर्जी कभी गोवा, कभी त्रिपुरा या कभी दिल्ली जाकर इस तरह के नाटक करती रहती हैं। इससे कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है , जो एक राज्य को नहीं चला पा रही हैं वह देश में क्या कर पाएंगी।
ममता का दिल्ली दौरा अहम है। यह पार्टी को राष्ट्रीय फलक पर ले जाने की उनकी तैयारियों को दिखाता है। उन्होंने भाजपा, कांग्रेस और जेडीयू के जाने-पहचाने चेहरों को पार्टी में शामिल किया है। इनमें 1983 क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम के सदस्य कीर्ति आजाद शामिल हैं।
कीर्ति आजाद ने दिसंबर 2015 में दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ में कथित अनियमितताओं और भ्रष्टाचार को लेकर तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को खुले तौर पर निशाना बनाया था। इसके कारण उन्हें भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से निलंबित कर दिया गया था। वह 2018 में कांग्रेस में शामिल हो गए थे। आजाद बिहार की दरभंगा संसदीय सीट से तीन बार लोकसभा के लिए चुने गए। 2014 में उन्होंने भाजपा के टिकट पर आम चुनाव लड़ा था।
दूसरा नाम हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर का है। तंवर ने 2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव से पहले टिकट वितरण में पैसे के लेनदेन का आरोप लगाया था जिसके बाद उन्हें कांग्रेस से अलग होना पड़ा था। कांग्रेस छोड़ने के बाद इस साल फरवरी में उन्होंने अपनी पार्टी ‘अपना भारत मोर्चा’ बनाई। वह हरियाणा की सिरसा लोकसभा सीट से सांसद भी रह चुके हैं। किसी समय वह राहुल गांधी के करीबी माने जाते थे। सूत्रों का कहना है कि तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के बाद तंवर को हरियाणा में पार्टी के नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।
इस तरह जद(यू) के पूर्व महासचिव पवन वर्मा भी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। वह बिहार के सीएम नीतीश कुमार के पूर्व सलाहकार व राज्यसभा के पूर्व सदस्य रहे हैं। वर्मा को 2020 में राज्य में सत्तारूढ़ जद(यू) से निष्कासित कर दिया गया था।