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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पर संशय बरकरार; आखिर कहां फंसा पेच? फडणवीस-शिंदे पर विपक्ष ने कसा तंज

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महाराष्ट्र में अब तक मुख्यमंत्री के चेहरे पर सहमति नहीं बन पाई है। भाजपा, शिवसेना और एनसीपी साथ बैठकर सहमति से फैसला लेने की बात कह रहे हैं तो विपक्ष इस देरी पर सवाल उठा रहा है। दावा किया जा रहा है कि भाजपा हाईकमान जातीय समीकरण से लेकर एनडीए के सहयोगी दलों को साथ लेकर चलना चाह रहा है। कहा यह भी जा रहा है कि देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में एकनाथ शिंदे सरकार का हिस्सा नहीं होना चाहते। मामला इसलिए भी तूल पकड़ रहा है, क्योंकि भाजपा के पास बंपर सीटें आई हैं और अजित पवार खुद को सीएम की रेस से बाहर कर चुके हैं। ऐसे में फडणवीस और शिंदे के बीच में से किसी एक को चुनने में इतनी देरी क्यों हो रही हैं? अटकलें ये भी है कि कहीं भाजपा नया नाम लाकर सभी को चौंकाने तो नहीं जा रही? इससे पहले शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। इस बीच दिल्ली में केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले ने एलान कर दिया था कि भाजपा नेतृत्व ने देवेंद्र फडणवीस को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया है, लेकिन पार्टी की ओर से अब तक इस बात की पुष्टि नहीं की गई। शिवसेना नेताओं का कहना है कि विधानसभा चुनाव शिंदे के नेतृत्व में ही लड़ा और जीता गया। उन्हें सीएम बनाया जाना चाहिए। वहीं, प्रदेश भाजपा नेताओं का कहना है कि केंद्रीय नेतृत्व मुख्यमंत्री पद के लिए नाम की घोषणा करने की जल्दबाजी में नहीं है। हमें निर्णायक जनादेश मिला है और अब प्राथमिकता सरकार गठन के लिए एक व्यापक योजना तैयार करना है। इसमें विभागों का बंटवारा और जिलों के प्रभारी मंत्री जैसे प्रमुख पदों का वितरण शामिल है। हालांकि, चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा का चेहरा रहे फडणवीस मुख्यमंत्री पद की दौड़ में सबसे आगे हैं।

शिवसेना (यूबीटी) का तंज
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद शिवसेना (यूबीटी) सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने कहा कि अगर देवेंद्र फडणवीस का नाम फाइनल हो गया है, तो जल्दी से इसकी घोषणा करें। आप महाराष्ट्र की जनता से किए गए वादों से क्यों वंचित कर रहे हैं, उन्हें क्यों दूर रख रहे हैं और महाराष्ट्र के स्टीयरिंग संकट को क्यों नजरअंदाज कर रहे हैं? महाराष्ट्र हो या हरियाणा, महाराष्ट्र के अखबारों में खबर आ रही है कि 95 सीटों पर डाले गए वोटों और गिने गए वोटों में अंतर है। करीब 76 सीटें ऐसी हैं, जहां कहा जा रहा है कि गिने गए वोटों की संख्या डाले गए वोटों से कम है। तो सवाल यह है कि क्या ईवीएम का इस्तेमाल वोटों की संख्या में छेड़छाड़ करने और विजेता घोषित करने के लिए किया जा रहा है। यह व्यापक चर्चा का विषय है। इस मुद्दे पर चर्चा और समाधान करने के बजाय इसे नकारना चुनाव आयोग की आदत बन गई है। शिवसेना (यूबीटी) सांसद संजय राउत ने कहा कि हम पिछले 10 सालों से यह सवाल उठा रहे हैं। जब कांग्रेस सत्ता में थी, तब भाजपा ने ईवीएम पर सवाल उठाए थे। ईवीएम इस देश में धोखा है और अगर ईवीएम नहीं होगी तो भाजपा को पूरे देश में 25 सीटें भी नहीं मिलेंगी। महाराष्ट्र और हरियाणा के नतीजे जिस तरह से आए हैं, हम उसे स्वीकार नहीं करते। बैलेट पेपर पर चुनाव करवाएं और जो भी नतीजे आएंगे, हम उसे स्वीकार करेंगे। कांग्रेस सांसद प्रमोद तिवारी ने कहा कि हर जगह भाजपा परिवार को तोड़ते आई है। वे पार्टियां तोड़ते हैं, उन्हें बर्बाद करते हैं। महाराष्ट्र में भी यही हो रहा है। उन्होंने एकनाथ शिंदे जी का भरपूर इस्तेमाल किया और अब वह मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। एनसीपी-एससीपी नेता क्लाइड क्रैस्टो ने कहा कि चुनावों के दौरान भाजपा ने कहा था कि हम महायुति के चेहरे के रूप में एकनाथ शिंदे के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। अब जब समय आ गया है, तब वे पीछे हट रहे हैं। जब उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है, तो उन्हें सीएम बनाइए। अब उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाने का समय आ गया है, तो भाजपा बिहार मॉडल न अपनाने की बात कर रही है। इसका मतलब है कि उन्होंने शिंदे का इस्तेमाल किया। क्या वे यह कहना चाह रहे हैं कि वे मुख्यमंत्री बनने के योग्य नहीं हैं? या वे यह कहना चाह रहे हैं कि हमने वह कर दिया, जो हमें करना था। हमने उनका इस्तेमाल किया और अब हम अपने आदमी को मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं? उन्हें लोगों के जनादेश का सम्मान करना चाहिए और ऐसे मुख्यमंत्री की घोषणा करनी चाहिए, जो महाराष्ट्र को समृद्धि की ओर ले जाए। पिछले हफ्ते आए चुनावी नतीजों में शिवसेना, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के महायुति गठबंधन ने भारी बहुमत के साथ सत्ता बरकरार रखी। महाराष्ट्र की 288 सदस्यीय विधानसभा में महायुति गठबंधन को 230 सीट और एमवीए को केवल 46 सीट मिलीं। भाजपा को 132, शिवसेना को 57 और एनसीपी को 41 सीटें मिलीं। इसके अलावा चार सीटें अन्य के खाते में गईं। शिवसेना (यूबीटी) 20 सीट जीतकर विपक्षी खेमे में सबसे बड़ी पार्टी बनी। कांग्रेस ने 16 सीटें जीतीं, जबकि राकांपा (शरदचंद्र पवार) 10 सीट के साथ सबसे पीछे रही।