सोशल मीडिया की दिग्गज कंपनी मेटा (पूर्व में फेसबुक) ने नफरत फैलाने वाले भाषणों पर रोक लगाने वाले नियमों में ढील देने का फैसला किया है। मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने नियमों में ढील देने की वजह हालिया चुनाव को बताया, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप ने जीत हासिल की है। मेटा के इस कदम को एलन मस्क के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स के नक्शे-कदम पर चलना माना जा रहा है। नियमों के ढील के बाद अब मेटा यूजर्स भी लिंग पहचान, यौन अभिविन्यास (सेक्सुअल ओरिएंटेशन) और आव्रजन जैसे मुद्दों पर खुलकर टिप्पणियां कर सकेंगे। हालांकि मेटा के इस कदम को लेकर मानवाधिकार समूहों ने चिंता जताई है और कहा है कि इस कद से सोशल मीडिया पर नफरती भाषणों की बाढ़ आ जाएगी और इसका सीधा असर समाज पर पड़ेगा। मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने मंगलवार को कहा कि कंपनी आव्रजन और लिंग पहचान जैसे विषयों पर प्रतिबंध हटाएगी। मेटा के नियमों में बदलाव के तहत यूजर्स लिंग पहचान या यौन अभिविन्यास के आधार पर मानसिक बीमारी या असामान्यता के आरोप लगा सकेंगे। दूसरे शब्दों में, अब फेसबुक, थ्रेड्स और इंस्टाग्राम पर यूजर्स समलैंगिक लोगों को मानसिक रूप से बीमार कह सकेंगे। कंपनी ने अपने ‘नीति तर्क’ से एक वाक्य भी हटा दिया, जिसमें बताया गया था कि यह कुछ घृणित आचरण पर प्रतिबंध क्यों लगाता है। हटाए गए वाक्य में कहा गया था कि ‘घृणास्पद भाषण डराने-धमकाने का माहौल बनाता है और कुछ मामलों में हिंसा को बढ़ावा दे सकता है’।
विशेषज्ञों ने मेटा के कदम पर जताई चिंता
विशेषज्ञों का मानना है कि डोनाल्ड ट्रंप के नेतृत्व वाली सरकार को खुश करने और कंटेंट मॉडरेशन की अपनी लागत को कम करने के लिए यह कदम उठाया गया है। वर्जीनिया विश्वविद्यालय के डार्डन स्कूल ऑफ बिजनेस में राजनीतिक और प्रौद्योगिकी रुझानों के व्याख्याता बेन लीनर ने कहा, ‘इस फैसले से वास्तविक दुनिया में नुकसान होगा। इससे न केवल संयुक्त राज्य अमेरिका में, जहां सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर अभद्र भाषा और गलत सूचना में वृद्धि हुई है, बल्कि पूरी दुनिया पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।’ मेटा के पूर्व इंजीनियरिंग निदेशक आर्टुरो बेजर ने भी हानिकारक सामग्री नीतियों में बदलावों को लेकर गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा, ‘मैं यह सोचकर कांप उठता हूं कि इन बदलावों का हमारे युवाओं पर क्या असर होगा। मेटा सुरक्षा के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पीछे हट रहा है।’