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संसद से बिल पारित होता है तो अदालत को इसे निरस्त कर देना चाहिए, जस्टिस नरीमन की टिप्पणी

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सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने शुक्रवार को कहा कि अगर मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर विधेयक संसद के दोनों सदनों से पारित हो जाता है, तो अदालत को इसे निरस्त कर देना चाहिए। मुंबई के दरबार हॉल में एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि यदि सीईसी और दो ईसी की नियुक्ति प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और एक विपक्ष के नेता की चयन समिति द्वारा की जाती है, तो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक कल्पना बनकर रह जाएंगे।उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए तीन व्यक्तियों के रूप में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता को शामिल करना शुरू किया है। दुर्भाग्य से एक विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, जो सदन से पारिस हो गया है। निश्चित रूप से यह लोकसभा में जाएगा और कुछ ही समय में एक अधिनियम बन जाएगा, जिसमें मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर प्रधानमंत्री द्वारा नियुक्त एक मंत्री होगा। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा कि अब यह दूसरी सबसे परेशान करने वाली बात है, क्योंकि, यदि वास्तव में आप सीईसी और अन्य ईसी को इस तरह से नियुक्त करने जा रहे हैं, तब स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव एक कल्पना बनकर रह जाएंगे। न्यायमूर्ति नरीमन ने कहा, मेरे अनुसार इसे एक मनमाना कानून मानकर इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए, क्योंकि यह चुनाव आयोग के कामकाज की स्वतंत्रता को गंभीर रूप से खतरे में डालता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने अपने व्याख्यान के दौरान बीबीसी दफ्तर पर छापे और अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर शीर्ष अदालत का हालिया फैसला का भी जिक्र किया।

1991 के कानून की जगह लेगा नया विधेयक
राज्यसभा ने मंगलवार को मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 पारित कर दिया। विधेयक के अनुसार, जो चुनाव आयोग (चुनाव आयुक्तों की सेवा की शर्तें और व्यवसाय का संचालन) अधिनियम, 1991 की जगह लेता है। सीईसी और ईसी की नियुक्ति एक चयन समिति की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी, जिसमें प्रधानमंत्री, एक केंद्रीय कैबिनेट मंत्री और विपक्ष के नेता या लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता शामिल होंगे।