महाराष्ट्र के तीसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहे देवेंद्र फडणवीस राजनीति के हर फन में माहिर हैं। सबसे खास उनका लचीला स्वभाव। मौके की नजाकत को समझते हुए बर्ताव करना। पार्टी के साथ वफादारी। हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा के शानदार प्रदर्शन और विधायक दल के नेता के तौर पर उनके चुनाव ने साफ कर दिया है कि वह राज्य का नेतृत्व करने की कुव्वत रखते हैं। फडणवीस का राजनीतिक सफर एक मिसाल पेश करता है। उन्होंने एक पार्षद के तौर पर जनता की सेवा करने से लेकर नागपुर के सबसे कम उम्र के मेयर बनने तक का खिताब अपने नाम किया और पार्टी के अंदर एक अहम नेता बनकर उभरे। वह शिवसेना के मनोहर जोशी के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले दूसरे ब्राह्मण नेता हैं। जनसंघ और बाद में भाजपा नेता रहे स्व. गंगाधर फडणवीस के बेटे देवेंद्र ने कम उम्र में ही राजनीति में कदम रख दिया था। 1989 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में शामिल हुए। 1992 में नागपुर भाजयुमो इकाई के अध्यक्ष बने। इसी साल उन्होंने नागपुर के रामनगर वार्ड से अपना पहला नगरपालिका चुनाव जीता और 21 साल की उम्र में नागपुर नगर निगम के सबसे युवा पार्षद बन गए। 1994 में भाजयुमो के प्रदेश उपाध्यक्ष बने। 1997 में 27 साल की उम्र में यहां के सबसे युवा मेयर बने। फडणवीस ने 1999 में अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 2014 के विस चुनावों से पहले फडणवीस की राजनीति के शिखर पर पहुंचने की चढ़ाई शुरू हो गई थी। फडणवीस ने 4,384 किमी लंबी महाजनादेश यात्रा के तहत राज्य की 288 विस सीटों में से 150 सीटों को कवर किया था। 2014 में उनके नेतृत्व में भाजपा ने 122 सीटें जीतीं। इससे प्रभावित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक चुनावी रैली में फडणवीस को ‘नागपुर का देश को तोहफा’ तक कहा था। महाराष्ट्र के सबसे मुखर राजनेताओं में से एक फडणवीस भ्रष्टाचार के आरोपों से बेदाग रहे हैं। सिंचाई घोटाले को लेकर बीती कांग्रेस-एनसीपी सरकार को मुश्किल में डालने का श्रेय भी इन्हीं को दिया जाता है। उनकी काबिलियत को देखते हुए उन्हें साल 2013 में महाराष्ट्र भाजपा के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया।
पार्टी की इच्छा का किया सम्मान, बने उपमुख्यमंत्री