भाजपा ने 2019 का लोकसभा का चुनाव जीतने के साथ ही 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी। तब से लेकर अब तक वह इस तरह का माहौल बनाती रही कि मानो विपक्ष की ओर से उसके सामने कोई चुनौती ही नहीं है, लेकिन राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने पूरे देश में एक माहौल खड़ा करने का काम किया। कांग्रेस के रायपुर अधिवेशन ने उस यात्रा की दावेदारी को एक ‘मोर्चाबंदी’ के रूप में पेश करने का काम किया है। रायपुर अधिवेशन से पार्टी ने न केवल यह संकेत दे दिया है कि वह 2024 में पीएम नरेंद्र मोदी को ‘वाक ओवर’ देने को तैयार नहीं है, बल्कि वह राहुल गांधी को भी विपक्ष के नेता के तौर पेश करने की दावेदारी करती हुई दिखाई पड़ रही है। राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा के दौरान भी आम लोगों से स्वयं को जोड़ने की कोशिश करते दिखाई पड़े थे। रायपुर अधिवेशन में भी उन्होंने अपने आपको इसी रूप में पेश करने की कोशिश की। अपने पास एक घर तक न होने की बात कहकर वे अपने को उन गरीबों से जोड़ने की कोशिश करते हुए दिखाई पड़े जो विकास के तमाम दावों के बावजूद आज भी किसी सुख-साधन की सुविधा से वंचित हैं। इतिहास बताता है कि इस तरह की भावुक और संवेदनशील अपील जनता के बीच बेहद कारगर साबित हुई है। इस अधिवेशन में एक बात बहुत साफ तौर पर दिखाई पड़ी कि कांग्रेस नेतृत्व अपनी जिम्मेदारी को बखूबी समझ रहा है। प्रियंका गांधी ने कहा कि यह कांग्रेस की जिम्मेदारी है कि वह उन लोगों को एक मंच उपलब्ध कराए, जिन्हें किसी भी कारण से यह लगता है कि देश में कुछ गलत हो रहा है और उसे ठीक करने की जरूरत है। यानी कांग्रेस गैर-भाजपाई विचारधारा के लोगों को अपनी छतरी के नीचे लेने के लिए न केवल तैयार है, बल्कि आवश्यकतानुसार वह कुछ समझौते करने के लिए भी तैयार है। नीतीश कुमार जैसे नेता कांग्रेस को लगातार अपनी इसी भूमिका को समझने और उसके अनुसार कार्य करने के लिए तैयार होने की बात कहते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि कांग्रेस नेतृत्व अपनी रणनीति में कामयाब रहा और वह स्वयं को विपक्षी अगुवा के रूप में पेश कर पाया तो अगले चुनाव में रोचक मुकाबला देखने को मिल सकता है। महागठबंधन का रुख बताता है कि अब कांग्रेस को विपक्ष के अगुवा के रूप में दावेदारी करने में ज्यादा परेशानी सामने नहीं आएगी। ध्यान देने की बात है कि पीएम नरेंद्र मोदी की करिश्माई सफलता के बाद भी भाजपा 2019 के लोकसभा चुनाव में 37.43 प्रतिशत वोट ही हासिल कर पाई थी। यानी लगभग 63-64 प्रतिशत गैर-भाजपाई विचारधारा के मतदाताओं की पसंद दूसरे दल रहे। यदि कांग्रेस इन्हें सहेजने में सफल रहे तो पलड़ा किसी भी ओर झुक सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने रायपुर अधिवेशन में मनुवाद का मुद्दा उठाकर यह बता दिया है कि वे नीतीश कुमार-तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव के साथ सुर में सुर मिलाने के लिए तैयार हैं। उन्होंने छह मार्च को अदाणी विवाद पर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन करने की बात कहकर यह भी साफ कर दिया है कि कांग्रेस इस बड़े अवसर को अपने हाथ से जाने देने के लिए तैयार नहीं है। वह मजबूती से इन मुद्दों के साथ जमीन पर उतरेगी।
कांग्रेस बन सकती है विपक्ष की आवाज
वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने अमर उजाला से कहा कि भाजपा इस तरह का माहौल बनाने की कोशिश करती है जैसे उसके सामने कोई चुनौती नहीं है। सच्चाई यह नहीं है। दिल्ली-पंजाब और पश्चिम बंगाल में भाजपा की इसी तरह की कोशिश पूरी तरह निष्फल साबित हुई है। आज कांग्रेस अपने को विपक्ष के अगुवा के तौर पर तैयार करती दिखाई पड़ रही है। आज भी महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, त्रिपुरा, केरल और तमिलनाडु में अनेक दल कांग्रेस के साथ खड़े हैं। समय के साथ दूसरे राज्यों में दूसरे दल भी उसके साथ आ सकते हैं। बड़ा प्रश्न इस बात का रहा है कि क्या विपक्ष को राहुल गांधी नेता के तौर पर स्वीकार होंगे? ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल जैसे नेता इसी बात पर कांग्रेस से बिदकते रहे हैं। यदि 2024 में लोकसभा चुनाव के बाद किसी दल को बहुमत न मिले तो इन दलों के पास कांग्रेस के अलावा किसी दूसरे दल के साथ जाने का विकल्प नहीं होगा। चूंकि, देश के राजनीतिक इतिहास में अनेक गठबंधन चुनाव के बाद ही अपना आकार ले पाए हैं, इसलिए अभी से सबको एक साथ आने को पहली शर्त के तौर पर नहीं देखना चाहिए। यदि कांग्रेस और अन्य दल अपनी-अपनी जमीन पर भाजपा को मजबूत चुनौती दें और उसे एक निश्चित स्कोर के पहले रोक सकें तो गठबंधन बड़ी समस्या नहीं बनेगा। स्वयं भाजपा के साथ भी कई राजनीतिक दल चुनाव बीतने के बाद ही साथ आए थे। लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि कांग्रेस का रायपुर अधिवेशन बड़े संदेश छोड़ने में सफल साबित हुआ है जिसका असर आने वाले दिनों में देश को देखने को मिलेगा। ज्यादा बड़ा प्रश्न नेता की विश्वसनीयता का है। जनता कांग्रेस को केवल इसलिए वोट नहीं देगी कि वे सब एक साथ खड़े हैं। बल्कि जनता उस नेता को वोट देगी जो उसके मुद्दों पर संघर्ष करता हुआ दिखाई पड़ेगा और उसकी नजरों में वह विश्वसनीय लगेगा। निश्चित तौर पर इस मोर्चे पर अभी कांग्रेस को और ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है क्योंकि इस मोर्चे पर अभी भी नरेंद्र मोदी का कोई मुकाबला नहीं है।