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25 लाख कैब ड्राइवरों का भविष्य दांव पर, क्या राहुल गांधी की यात्रा के बाद दूर होगी उनकी समस्याएं

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एक समय था जब हमारी गाड़ी खड़ी भी रहती थी तो ओला-उबर उसका पैसा देती थी। अब हालात ऐसे हैं कि न राइड में ढंग का कमीशन मिलता है। न ही उतना पैसा है। सीएनजी के रेट लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जबकि यह कंपनियां उसकी तुलना में हम ड्राइवर को कुछ नहीं दे रही हैं। देशभर में ओला उबर चलने वाले तकरीबन 25 लाख ड्राइवर हैं। लेकिन किसी का भविष्य इसमें बेहतर नहीं दिख रहा। ऑल इंडिया ड्राइवर संगठन (ओला उबर) ने केंद्र सरकार से उनके भविष्य को लेकर दखल देने की मांग की है। दरअसल कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने बीते दिनों दिल्ली में एक उबर ड्राइवर के साथ एक राइड ली थी। जिसमें ड्राइवर ने अपनी तकलीफों को साझा किया था। ड्राइवर संघ ने इस मुलाकात के बाद राहुल गांधी से उनकी समस्याओं को संसद में भी बात उठाने की मांग की है। पूरे देश में इस वक्त ओला और उबर के साथ तकरीबन 25 लाख ड्राइवर जुड़े हुए हैं। ऑल इंडिया ड्राइवर संगठन (ओला उबर) के संगठन सचिव मुकेश क्षेत्री कहते हैं कि इस इंडस्ट्री की ओर न तो सरकार देख रही है और न ही यह कंपनियां। उनका कहना है कि शुरुआती दौर में तो यह बिजनेस बहुत फायदे का माना जाता था। यही वजह थी कि ज्यादा से ज्यादा लोग इस पेशे में जुड़ते चले गए। स्थिति यह थी कि ठीक-ठाक कमाई होने के चलते लोगों ने अपनी गाड़ियां भी ले ली और खुद ड्राइविंग करने लगे। मुकेश कहते हैं कि आज से 10 साल पहले रोज की कमाई दो से तीन हजार रुपए या उससे भी ज्यादा हो जाती थी। पहले जहां कमीशन ठीक मिलता था वहीं अब धीरे-धीरे यह कम भी होने लगा। उनका कहना है कि इस वक्त 40 फ़ीसदी तक का कमीशन प्रत्येक राइड पर कंपनी को चला जाता है। ऐसे में उनके पास जो पैसा आता है वह पर्याप्त नहीं होता है। मुकेश कहते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरह उनके ही एक ड्राइवर साथी के साथ यात्रा की और उनकी समस्या को समझा है। उससे उम्मीद की जा रही है कि कम से कम कांग्रेस शासित राज्यों में तो उनके संगठन से जुड़े लोगों को फायदा होगा। संगठन से ताल्लुक रखने वाले और कर्नाटक में बीते दिनों हुई ओला उबर की हड़ताल को लीड करने वाले एम.मुरूगन कहते हैं कि कंपनियों की मनमानी पर न तो सरकार अंकुश लगा पाती है। और न ही कोई अन्य जिम्मेदार एजेंसियां। वह कहते हैं कि बीते पांच साल का रिकॉर्ड उठाकर आप देख लीजिए तो पता चल जाएगा की कितनी बार ओला और उबर चलाने वालों ने देश के अलग-अलग हिस्सों में हड़ताल की है। मुरूगन कहते हैं कि शुरुआती दौर में सीएनजी और अन्य फ्यूल की कीमत कम थी। कंपनियों की ओर से प्रत्येक राइड पर कटने वाला कमीशन भी बहुत कम होता था। अब कमीशन भी ज्यादा कटने लगा है और सीएनजी के रेट भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं। जब ओला उबर चलने वाले ड्राइवर इन कंपनियों से प्रति किलोमीटर राइट बढ़ाने की बात करते हैं तो कंपनियां सुनती नहीं है। नतीजा यह होता है कि देश के अलग-अलग हिस्सों में लगातार हड़ताल होने लगती हैं। वह कहते हैं कि अलग-अलग राज्यों में उनके संगठनों ने सरकार को ज्ञापन के माध्यम से ओला उबर ड्राइवर के भविष्य को सुनिश्चित करने की मांग की है। इसमें प्रत्येक ड्राइवर के इंश्योरेंस के साथ-साथ पेंशन देने की मांग तो है ही। इसके साथ इन कंपनियों की और से की जाने वाली मनमानी पर भी लगाम लगाए जाने की मांग की जा रही है। दिल्ली एनसीआर में ड्राइवर्स एसोसिएशन के सचिव नगेंद्र बहादुर सिंह कहते हैं कि बीते कुछ दिनों में जिन लोगों ने अपनी गाड़ियां खरीद कर ओला उबर में लगाई थी। अब वह उनकी किस्ते भी नहीं दे पा रहे हैं। ऊपर से बैंक वालों की ओर से किस्तें न देने पर लगातार परेशान किया जा रहा है। अब स्थिति यह है कि एक ड्राइवर ओला उबर और अन्य कंपनी के साथ भी अपनी गाड़ी को संबद्ध करता है। ताकि ज्यादा से ज्यादा राइड मिल सके। बाबजूद इसके कई बार ऐसा होता है कि दिन में एक राइड से ज्यादा भी नहीं मिलती। महाराष्ट्र राज्य राष्ट्रीय कामगार संघ के सचिव सुनील बोरकर कहते हैं कि बीते दिनों महाराष्ट्र में भी ओला उबर के ड्राइवर ने हड़ताल की थी। उनका कहना है कि जब ईंधन के रेट लगातार बढ़ रहे हैं तो कंपनियां प्रति किलोमीटर के लिहाज से बढ़ोतरी क्यों नहीं करती है। सुनील कहते हैं कि इससे निश्चित तौर पर लोगों पर बोझ बढ़ेगा लेकिन कंपनियों को चाहिए कि बीच का रास्ता निकालते हुए लोगों को भी बढ़े हुए किराए से निजात दिलाएं। इसके लिए बीच का रास्ता यही है कि इन कंपनियों की ओर से लिए जाने वाले कमीशन में कटौती की जाए। ऐसा करने पर ड्राइवर को कुछ फायदा तो होगा।

ऑल इंडिया ड्राइवर संगठन के मुकेश छेत्री कहते हैं कि उनका संगठन लगातार केंद्र सरकार से अपनी समस्याओं से अवगत कराता आया है। लेकिन अब तक उनको आश्वासन के सिवा कोई ठोस परिणाम नहीं दिखे हैं। मुकेश कहते हैं कि राहुल गांधी ने जिस तरीके से उनकी समस्याओं को समझा है। अगर वह संसद में उनकी आवाज उठाते हैं तो निश्चित तौर पर इन कंपनियों पर दबाव भी बनेगा। किसके साथ सरकार भी देश के तकरीबन 25 लाख ओला उबर ड्राइवर की समस्याओं को समझ कर कुछ ऐसी नीतियां बनाएगी जिसमें इनका भविष्य सुरक्षित हो सके।