महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री और राकांपा प्रमुख अजित पवार ने शुक्रवार को कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कद के नेता आमतौर पर तहसील स्तर के छोटे स्थानों में चुनावी रैली नहीं करते हैं। इसलिए, पीएम मोदी बारामती नहीं आएंगे। अजित पवार के इस बयान पर कांग्रेस ने महायुति गठबंधन पर कटाक्ष किया। कांग्रेस ने दावा किया कि चुनाव के बीच महायुति गठबंधन में टकराव शुरू हो गया है। पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए अजित पवार ने कहा कि जब पीएम मोदी जैसे नेता चुनाव प्रचार करते हैं, तो उनकी रैलियां जिला मुख्यालय पर आयोजित की जाती हैं, न कि तहसील स्तर पर। अजित पवार ने यह भी कहा कि 2019 में मोदी ने बारामती में रैली की थी, लेकिन तब उद्देश्य अजित पवार को हराना था। लेकिन अब स्थिति अलग है, और मोदी चाहते हैं कि अजित पवार जीतें। उस समय अजित पवार अपने चाचा शरद पवार के नेतृत्व वाली राकांपा के सदस्य के रूप में विपक्षी खेमे में थे। अजित पवार ने बृहस्पतिवार को कहा था कि उन्होंने पीएम मोदी से बारामती निर्वाचन क्षेत्र में आने का अनुरोध नहीं किया, क्योंकि वहां की लड़ाई परिवार के भीतर है। बारामती से मौजूदा विधायक अजित पवार अपने भतीजे युगेंद्र पवार के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं, जो शरद पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार हैं। अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा अब भाजपा और शिवसेना के साथ सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा है। कांग्रेस ने अपने आधिकारिक एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में दावा किया कि चुनाव के बीच महाराष्ट्र में एनडीए गठबंधन में टकराव शुरू हो गया है। कांग्रेस ने कहा, ‘अब अजित पवार ने साफ कह दिया है कि ‘नरेंद्र मोदी को मेरे इलाके में रैली करने की जरूरत नहीं है।’ कांग्रेस ने कहा कि महाराष्ट्र छत्रपति शिवाजी महाराज, राजर्षि शाहू महाराज और महात्मा फुले का है। शिवाजी महाराज की शिक्षा समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की है। ऐसे समय में जब चुनाव करीब हैं, अजित पवार भाजपा को अपनी हद में रहने की हिदायत दे रहे हैं।
महाराष्ट्र के लोगों को पसंद नहीं भाजपा की नफरत की राजनीति: कांग्रेस
कांग्रेस ने कहा, ‘इससे साफ पता चलता है कि अजित पवार को यह आभास हो गया है कि महाराष्ट्र में महा विकास अघाड़ी सरकार सत्ता में आ रही है। इसके पीछे एक कारण भाजपा की ‘नफरत की राजनीति’ है, जो संविधान में विश्वास करने वाले महाराष्ट्र के लोगों को पसंद नहीं है।’ कांग्रेस की यह टिप्पणी 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले आई है।