मुंबई/नई दिल्ली, मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार के बाद महाराष्ट्र बीजेपी में फिर से नाराजगी दिखने लगी है। बीजेपी की राष्ट्रीय सचिव और महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रह चुकीं पंकजा मुंडे खफा हैं। कैबिनेट विस्तार में उनकी छोटी बहन और लोकसभा सांसद प्रीतम मुंडे को जगह नहीं मिली। लेकिन पंकजा महज इस बात से नाराज नहीं हैं। पिछले कुछ वक्त से हो रही चीजें एकत्र होकर पंकजा की नाराजगी की वजह बनीं। हालांकि यह नाराजगी केंद्रीय नेतृत्व से न होकर प्रदेश लीडरशिप से है। विरासत की लड़ाई पंकजा मुंडे के पिता गोपीनाथ मुंडे ने महाराष्ट्र में बीजेपी को स्थापित करने में बड़ी भूमिका निभाई। बीजेपी के एक नेता ने कहा कि गोपीनाथ मुंडे की मेहनत का ही नतीजा था कि बीजेपी आज महाराष्ट्र में एक बड़ी पार्टी है। उससे पहले बीजेपी शिवसेना के साथ छोटे पार्टनर की भूमिका में ही थी और इस पार्टनरशिप में शिवसेना की ही मर्जी चलती थी। गोपीनाथ मुंडे के निधन के बाद उनकी बेटी प्रीतम मुंडे को लोकसभा का चुनाव लड़ाया गया। वह जीतीं भी। गोपीनाथ मुंडे की बड़ी बेटी और प्रीतम की बड़ी बहन पंकजा मुंडे महाराष्ट्र सरकार में मंत्री रहीं। वह गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ा रही हैं। मुंडे महाराष्ट्र में बड़े ओबीसी नेताओं में थे। मुंडे परिवार वंजारी समुदाय से आता है। पंकजा मुंडे पहले भी पार्टी से जो उम्मीद कर रही थीं वह उन्हें नहीं मिला लेकिन नाराजगी तब बढ़ गई जब बीजेपी ने वंजारी समुदाय से ही एक और नेता को आगे कर दिया। पंकजा और प्रीतम को बीजेपी के ओबीसी नेताओं के रूप में जाना जाता है। लेकिन बीजेपी के वंजारी समुदाय से आने वाले भागवत कराड को आगे करने से यह संदेश गया है कि बीजेपी नई लीडरशिप पैदा करना चाहती है। यही पंकजा के खफा होने की वजह भी है। क्या किनारे करने की कोशिश? पंकजा के समर्थकों ने प्रीतम मुंडे को कैबिनेट में शामिल न करने पर खुलकर नाराजगी जाहिर की और विरोध भी किया। बड़ी संख्या में उनके समर्थकों ने बीजेपी की स्थानीय यूनिट से इस्तीफा दिया। पंकजा समर्थकों का मानना है कि संगठन में उन्हें धीरे-धीरे किनारे करने की कोशिश हो रही है। 2019 में जब पंकजा जिले के पार्ली सीट से विधानसभा का चुनाव हारीं, तब भी उनके समर्थकों का कहना था कि उन्हें पार्टी के भीतर के ही कुछ लोगों ने हराने का काम किया है। इसके बाद पंकजा को उम्मीद थी कि पार्टी उन्हें विधानसभा परिषद के लिए नॉमिनेट करेगी और शायद नेता प्रतिपक्ष बनाएगी लेकिन यह नहीं हुआ। बीजेपी ने नरेश कराड को यह जगह दी। इसके बाद जब राज्यसभा की बारी आई तो पंकजा समर्थक मान रहे थे कि अब पंकजा को राज्यसभा भेजा जाएगा, लेकिन बीजेपी ने भागवत कराड को चुना। यह पंकजा समर्थकों को इसलिए भी चुभा, क्योंकि कराड वंजारी समुदाय से आते हैं और पंकजा उसी समुदाय से नेता हैं। मोदी सरकार में कैबिनेट विस्तार में कई नए लोगों को जगह दी गई और पंकजा को उम्मीद थी कि इस बार तो कम से कम उनकी बहन प्रीतम मुंडे को जगह मिलेगी, लेकिन फिर मुंडे बहनों की अनदेखी कर बीजेपी ने भागवत कराड को राज्यमंत्री बना दिया। ‘पार्टी छोड़ने का समय नहीं’ पंकजा के समर्थकों ने इस बार आर-पार की लड़ाई का मूड बना लिया तो फिर पंकजा ने उन्हें शांत किया। पंकजा ने स्वीकार किया कि प्रीतम को कैबिनेट में जगह न मिल पाने से नाराज हैं लेकिन यह सिद्धांतों के लिए धर्म युद्ध का सही समय नहीं है। इसका फैसला सही समय पर लिया जाएगा।
अपने समर्थकों से पंकजा मुंडे ने कहा कि उनके त्याग और कठिन मेहनत को पार्टी ने नजरअंदाज किया है लेकिन यह पार्टी को छोड़ने का समय नहीं है। पंकजा ने एक बार फिर स्टेट के कुछ नेताओं पर हमला बोला। पंकजा मुंडे ने कहा कि पार्टी के भीतर ही कुछ ऐसे लोग हैं, जिनकी मंशा खराब है और अक्सर विवाद पैदा करते हैं। पंकजा ने साफ कहा कि समय ही हर चीज का समाधान है। यह कोई भी अतिवादी फैसला लेने का वक्त नहीं है। उनके पिता ने महाराष्ट्र में बीजेपी के लिए जमीन तैयार की। आखिर हम अपने ही घर को क्यों छोड़ें, जिसे हमने बहुत ही मेहनत के साथ तैयार किया है। पंकजा की प्रदेश के कुछ नेताओं से लड़ाई जगजाहिर है। पंकजा ने इसे छुपाया भी नहीं साथ ही केंद्रीय नेतृत्व पर भरोसा जताया। पंकजा ने कहा मेरे नेता पीएम नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा है।
आखिर बीजेपी से इतनी खफा-खफा सी क्यों हैं पंकजा मुंडे, अब आगे क्या प्लान?
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