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‘आरबीआई रेपो रेट में कर सकता है 25 बीपीएस की कटौती, बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट ने बताया दावे का कारण

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भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) 7 फरवरी को मौद्रिक नीति घोषणा के दौरान पांच साल के अंतराल के बाद पहली बार रेपो दर में 25 आधार अंकों (बीपीएस) की कटौती का एलान कर सकता है। बैंक ऑफ बड़ौदा की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की तीन दिवसीय बैठक फिलहाल जारी है। आरबीआई के नए गवर्नर संजय मल्होत्रा शुक्रवार को पहली बार एमपीसी के फैसले का एलान करेंगे। रिपोर्ट के अनुसार मुद्रास्फीति, जिसपर फोकस मौद्रिक नीति के केंद्र में है, में नरमी के संकेत दिख हैं, इसलिए केंद्रीय बैंक के पास दर कटौती का मौका है। रिपोर्ट में कहा गया है, “सभी मैक्रो और भू-राजनीतिक कारकों को देखते हुए आरबीआई की ओर से नीतिगत ब्याज दरों खासकर रेपो रेट में 25 आधार अंकों की कटौती की गुंजाइश बनी हुई है।” आरबीआई ने पिछली बार कोविड के दौरान मई 2020 में नीतिगत ब्याज दरों में कटौती की थी। तब रेपो रेट को घटाकर चार प्रतिशत कर दिया गया था। इसके बाद सात बार रेटो में इजाफा किया गया, जिससे यह बढ़कर 6.5% पर पहुंच गया। फरवरी 2023 के बाद रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है।

टमाटर, प्याज और आलू जैसी जरूरी सब्जियों की कीमतों में राहत

बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट के अनुसार महंगाई का दबाव कम हुआ है। मुख्य रूप से टमाटर, प्याज और आलू जैसी जरूरी सब्जियों की कीमतों में गिरावट आई है। इन वस्तुओं की बेहतर आपूर्ति ने उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) में मूल्य अस्थिरता को कम करने में योगदान दिया है। यह आरबीआई को ब्याज दरों में कटौती शुरू करने के लिए कुछ लचीलापन प्रदान करता है, हालांकि यह प्रक्रिया धीरे-धीरे होने की उम्मीद है और आगे के आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर है। पिछली मौद्रिक नीति की बैठक के बाद से, कई वैश्विक और घरेलू कारकों ने वित्तीय बाजारों को प्रभावित किया है। यह परिसंपत्ति बाजारों में अस्थिरता बढ़ा रहा है, जिसका भारतीय रुपये पर प्रभाव पड़ा है।  रिपोर्ट में वैश्विक कारोबार में अस्थिरता के लिए बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और व्यापार नीतियों से जुड़ी चिंताओं को जिम्मेदार ठहराया गया है। विशेष रूप से अमेरिका, कनाडा, मैक्सिको और चीन जैसी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं की ओर से लगाए गए टैरिफ और काउंटर-टैरिफ की आशंका से वैश्विक बाजार पर असर पड़ा है। इन तनावों के कारण डॉलर के मजबूत होने से रुपये सहित प्रमुख वैश्विक मुद्राओं पर असर पड़ा है। बैंक ऑफ बड़ौदा की रिपोर्ट में कहा गया है, “घरेलू तरलता में कमी देखी गई है, बैंकों को धीमी जमा वृद्धि के कारण दबाव का सामना करना पड़ रहा है। जबकि ऋण वृद्धि स्थिर हो रही है। बैंकिंग क्षेत्र में तरलता की कमी स्पष्ट हो गई है। इसके अलावे, घरेलू आर्थिक विकास असमान बना हुआ है, जिसमें प्रीमियम-मूल्य वाली वस्तुएं उपभोग प्रवृत्तियों को आगे बढ़ा रही हैं।” वित्तीय वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनियों के वित्तीय परिणाम बिक्री में मंदी को दर्शाते हैं, जो व्यवसायों के लिए चुनौती खड़े होने के संकेत दे रहा है। यह प्रवृत्ति विनिर्माण क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धित (GVA) में भी दिखाई देने की आशंका।

वृद्धि दर को मदद देने के लिए ब्याज दरों में कटौती का हो सकता है एलान

वर्तमान आर्थिक स्थितियों को देखते हुए, रिपोर्ट में कहा गया है कि आरबीआई वित्तीय स्थिरता बनाए रखते हुए और वृद्धि दर को मदद देने आवश्यकता को संतुलित करते हुए ब्याज दरों में कटौती कर सकता है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि भविष्य में केंद्रीय बैंक का दृष्टिकोण सतर्क और आंकड़ों पर आधारित होगा।