भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव जन्माष्टमी (6-7 सितंबर) को पूरे देश में पूरे उत्साह के साथ मनाया जा रहा है। कृष्ण भक्तों के द्वारा भगवान कृष्ण के सभी रूपों में सबसे अधिक उनका बालरूप ही पसंद किया जाता है। अब राम भक्तों को भी अपने आराध्य भगवान राम को बाल रूप में देखने और पूजने का अवसर मिल सकेगा। ऐसा इसलिए होगा क्योंकि अयोध्या में भगवान राम को बाल रूप में ही स्थापित किया जाएगा। उनकी मूर्ति पर पांच वर्ष के बच्चे जैसी कोमलता और बच्चों जैसी मंद मुस्कान सुशोभित होगी। श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सूत्रों से मिली सूचना के अनुसार अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति लगभग 61 इंच ऊंची होगी। इसमें उनके सिर पर एक छोटा मुकुट भी शामिल होगा जो लगभग पांच इंच का होगा। इसे एक ऊंचे स्थल पर विराजमान किया जाएगा जिससे भक्तों को 35 फीट दूर से ही भगवान के दर्शन हो सकें।
कैसे हुई मूर्ति की ऊंचाई की गणना
भगवान राम की मूर्ति लगाते समय इस बात की गणना की गई थी कि भगवान राम की प्रतिमा इतनी ऊंचाई पर रखी जाए जिससे रामनवमी के दिन सूर्य का प्रकाश सीधे भगवान राम के मस्तक पर पड़े। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (सीबीआरआई) के विद्वानों ने अपनी गणना के बाद यह पाया गया था कि यदि भगवान राम की मूर्ति भूमि से 103 इंच ऊंचाई के आसन (Pedestal) पर स्थापित किया जाए तो यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। इसके बाद ही आसन और मूर्ति की ऊंचाई पर सहमति बनी और मूर्ति निर्माण का कार्य प्रारंभ हुआ। अमर उजाला को मिली जानकारी के अनुसार, अयोध्या में भगवान राम की कैसी मूर्ति लगाई जाए, इस पर श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट की बैठकों में कई बार चिंतन किया गया था। भाजपा ने राम मंदिर आंदोलन के दौरान तीर-धनुष लिए वयस्क राम की छवि का उपयोग किया था। राम मंदिर आंदोलन के दिनों में भगवान की यह छवि बहुत लोकप्रिय हो गई थी। राम चरित मानस की पुस्तकों में लंबे समय से राम दरबार की तस्वीर छापी जाती रही है। इस तस्वीर में सिंहासन पर बैठे भगवान राम और माता सीता के साथ उनके सभी भाई और भक्त हनुमान दिखाई पड़ते हैं। यह छवि भी लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय रही है। आज भी घरों में पूजा-पाठ के लिए लोग इसी प्रकार की छवि का सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं। इस तरह की मूर्ति बनाने पर भी विचार हुआ था।
अंततः इस बात पर सहमति बनी कि अयोध्या भगवान राम के जन्म स्थली के रूप में याद किया जाता है। यहीं के दशरथ महल में उनका बाल समय बीता और उन्होंने इसी रूप में यहां क्रीड़ाएं की थीं। इसलिए अयोध्या में भक्तों को उनका बाल रूप ही दर्शन के लिए मिलना चाहिए। इस रूप पर सबकी सहमति बनी और अंततः इसी रूप में भगवान राम की मूर्ति स्थापित करने पर मुहर लग गई।
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