बर्फीले पहाड़ों से गुजरती भारत-चीन सीमा की चौकसी का जिक्र होता है तो सहज ही आईटीबीपी का नाम सामने आ जाता है। यही वो सुरक्षाबल है, जो विपरित परिस्थितियों में भी इस दुर्गम बॉर्डर की हिफाजत करता है। अमरनाथ में आईटीबीपी ने यात्रियों को हर संभव मदद दी। यात्रा संपन्न होने के बाद जवान वापस आने लगे तो बस गहरे खड्ड में जा गिरी। छह जवान शहीद हो गए और 30 गंभीर रूप से घायल हैं। मंगलवार को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में जो हादसा हुआ है, वैसा ही कुछ 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ था। केदारनाथ त्रासदी में आईटीबीपी ने करीब नौ दिन तक राहत व बचाव कार्य के अलावा सर्च आपरेशन किया था। दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आईटीबीपी के देवदूतों को सराहना मिली थी। वापस लौटते वक्त हेलीकॉप्टर क्रैश हो गया और आईटीबीपी के 15 जवान शहीद हो गए थे। उत्तराखंड के केदारनाथ में साल 2013 में 16-17 जून को भयानक आपदा आ गई थी। चारों तरफ पानी ही पानी था। छह हजार से ज्यादा लोग मारे गए थे। पहले मूसलाधार बारिश और उसके बाद चौराबाड़ी झील का फटना, इसने सब कुछ तहस-नहस कर दिया था। लोगों ने शांत रहने वाली मंदाकिनी का रौद्र रूप देखा। चूंकि उस इलाके में आईटीबीपी तैनात है, इसलिए सबसे पहले राहत एवं बचाव कार्य में यही बल लगा था। एक सप्ताह से अधिक समय तक राहत व बचाव ऑपरेशन जारी रहा। जब सब कुछ सामान्य हो गया और आईटीबीपी जवान वापसी करने लगे तो एक बड़ा हादसा हो गया। भारतीय वायुसेना का हेलीकॉप्टर 25 जून 2013 को दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। इसमें आईटीबीपी के 15 जवान सवार थे। इनके अलावा भारतीय वायु सेना के पांच कर्मी भी चौपर में थे। उस हादसे में सभी 20 सैन्यकर्मी मारे गए थे। एनडीआरएफ की 14 टीमों ने 15 दिन तक उत्तराखंड में रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया था। आईटीबीपी के सहयोग से दस हजार लोगों को रेस्क्यू किया गया था। तहस-नहस हुई संचार प्रणाली, पावर एवं पेयजल सप्लाई और सड़कें, आईटीबीपी ने दूसरे बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया। हिमवीरों को नहीं मालूम था कि यह उनकी आखिरी ड्यूटी होगी।
अमरनाथ में बादल फटा तो देवदूत बने थे आईटीबीपी जवान
पवित्र अमरनाथ यात्रा के दौरान भी अन्य बलों के साथ आईटीबीपी ने सराहनीय कार्य किया था। 8 जुलाई को अमरनाथ गुफा के पास बादल फट गया था। आसपास के क्षेत्र में पानी का सैलाब आ गया। जहां टैंट लगे हुए थे, तेज रफ्तार से आया पानी वहां घुस गया। आईटीबीपी ने राहत और बचाव कार्य शुरू किया। हालांकि बाद में वहां दूसरे बल भी पहुंच गए थे। आईटीबीपी के जवानों ने लगातार 36 घंटे तक काम किया। पहले लोगों को बचाकर उन्हें सुरक्षित स्थानों की ओर रवाना किया। उसके बाद सर्च आपरेशन शुरु किया। इस हादसे में पहले ही दिन 13 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी। 35 से ज्यादा लोग लापता हो चुके थे। हादसे से पहले और उसके बाद आईटीबीपी जवानों ने यात्रियों को हर संभव सहायता की। शेषनाग व यात्रा मार्ग के दूसरे हिस्सों पर तीर्थयात्रियों को ऑक्सीजन मुहैया कराई गई। जो यात्री चल नहीं सकते थे, उन्हें सहारा दिया। अमरनाथ यात्रा के ऊंचाई वाले मार्ग पर जगह जगह आईटीबीपी जवान ऑक्सीजन सिलेंडर लिए थे। शेषनाग (12324 फीट) से महागुन टॉप (14000 फीट) तक जाने वाले रास्ते पर सांस फूलने के ज्यादा मामले देखे जा रहे थे। आईटीबीपी जवानों ने ऐसे क्षेत्रों में अपनी चिकित्सा सहायता प्रणाली को हाई अलर्ट पर रखा। आवश्यकता पड़ने पर यात्रियों को स्ट्रेचर पर लेटाकर शेषनाग कैंप ले जाया गया। आईटीबीपी वर्षों से यात्रा के दौरान इस तरह की सहायता प्रदान करती रही है। 2019 में भी इस बल के जवानों को खतरनाक भूस्खलन वाले क्षेत्रों में यात्रियों की सुरक्षा के लिए ढाल की दीवार बनाते हुए देखा गया था। यात्रियों को उफनते नालों पर पुलों को सुरक्षित पार कराते हुए देखा गया। जुलाई के अंतिम सप्ताह में भी अमरनाथ गुफा के निकट भारी मात्रा में पानी आ गया था। वहां से आईटीबीपी ने चार हजार लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया था। जब अमरनाथ यात्रा शांतिपूर्वक तरीके से संपन्न हो गई और जवान अपनी यूनिट के लिए वापसी करने लगे तो बस हादसा हो गया।