भिवंडी । एम हुसेन।कोविड 19 आईजीएम उपजिला अस्पताल में कार्यरत डॉ.ऐनम शेख एवं डॉ. ज़ैनब शेख कोरोना को हराकर फिर उसी तन्मयता के साथ कोरोना मरीजों की सेवा में लग गई है| मुंब्रा की रहने वाली डॉ. ऐनम शेख एवं भिवंडी के गैबीनगर की रहने वाली डॉ. ज़ैनब शेख कोविड 19 के अस्पताल में काम करने के कारण अपने घर भी नहीं जाती हैं| जिसके कारण दोनों डॉक्टर एक साथ रहती हैं| कोरोना संक्रमण से बचने के लिये सभी सुरक्षा उपायों के बावजूद डॉ. ऐनम कोरोना मरीजों की देखभाल करते समय संक्रमित हो गई थी| उनके साथ ही रहने के कारण डॉ. ज़ैनब शेख भी संक्रमित हो गई| डॉ. ऐनम ने बताया कि छह जून से उन्हें बुखार आ रहा था| सांस फूल रही थी, बदन में दर्द हो रही थी और खांसी भी आ रही थी| बुखार का वह दवा भी ले रही थी| लेकिन कई दिन बाद भी जब बुखार नहीं गया तो उन्होंने अपने स्वैब की जांच कराया| 20 जून को हुई जांच में वह पॉजिटिव पाई गई| एक कमरे में एक साथ रहने के कारण दोनों डॉक्टर संक्रमित हो गई| जिसके बाद दोनों डॉक्टरों को उसी आईजीएम उपजिला अस्पताल में इलाज के लिये भर्ती कराया गया जहां वह काम करती हैं| लगभग एक सप्ताह तक कोरोना का इलाज होने बाद दोनों डॉक्टरों को हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई थी| जिसके बाद 14 दिन क्वारंटीन में रहने के बाद पुनः मरीजों की सेवा में उसी तरह से लग गई हैं|
डॉ. ऐनम शेख बताती हैं कि मुंबई से एमबीबीएस करने के बाद अभी जनवरी महीने में ही वह आईजीएम उपजिला अस्पताल में लगी थी| आईजीएम उपजिला अस्पताल में कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ने के कारण काम अधिक पड़ गया| मई महीने में कई गंभीर मरीज भी आ गये थे| हम लोग सुरक्षा को ध्यान में रखते हुये पीपीई किट पहनकर ही काम करते थे| फिर भी किसी मरीज के संपर्क में आ गये थे|
उन्होंने बताया कि अस्पताल में प्रायः वह रात की ड्यूटी में काम करती थी| रात में प्रायः मरीज ऑक्सीजन मास्क निकाल देते थे| वार्ड में बैठकर हम लोग देखते रहते थे| उन्हें ऑक्सीजन मास्क लगाने के लिये दबाव डालते थे| कभी-कभी कोई मरीज ऑक्सीजन मास्क निकालने के बाद भी नहीं लगाते थे| जिन्हें जाकर जाकर लगाना पड़ता था| रात में प्रायः मरीज नेजल कैनुला निकाल देते थे| रात के समय मरीजों के मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगाते समय उसका भाप हमारे मुंह पर आता था| ऐसा एक बार नहीं कई बार होता रहा है| संभवता उसी दौरान हम लोग भी संक्रमित हो गये|
जून महीने के पहले सप्ताह में ही बुखार आना शुरू हो गया था| उन्होंने बताया कोरोना संक्रमित होने के एक सप्ताह बाद ही वह ठीक हो गई थी| लेकिन क्वारंटीन के दौरान डिप्रेशन में रहती थी| होटल के जिस कमरे में वह क्वारंटीन थी| उसमें सिर्फ एक खिड़की थी| क्वारंटीन के दौरान कमरे में अकेले बैठे हुये खिड़की से बाहर आसमान देखती रहती थी|
ये कैसे कोरोना योद्धा ?
हर जगह कोरोना योद्धाओं का स्वागत सत्कार होता है| उन्हें गुलदस्ता दिया जाता है,उनके ऊपर फूलों की वर्षा की जाती है| लेकिन हम लोग कैसे कोरोना योद्धा हैं? जो अपनी जान की बाजी लगाकर मरीजों की सेवा तो करते हैं| लेकिन कोरोना जैसी बीमारी को हराने के बाद उन्हें एक फूल भी नसीब नहीं हुआ| अस्पताल के किसी भी डॉक्टर ने कोई शुभकामना नहीं दिया| डॉ. जैनब शेख बताती हैं कि वह पिछले डेढ़-दो महीने से घर नहीं गई हैं| लेकिन कोरोना संक्रमित होने के बाद मनपा अधिकारी जबरन उनके परिवार को क्वारंटीन कर दिये थे| उनके घर पर क्वारंटीन का बोर्ड लगा दिया गया था| उनके घर को सील कर दिया गया था| जब वह घर नहीं गई थी और उनके परिवार का भी कोई सदस्य नहीं मिलने नहीं आया था| इसके बावजूद उनके परिवार को क्वारंटीन कर दिया गया था| जिससे वह काफी मानसिक तनाव में थी|
कोरोना को हराकर फिर उसी तन्मयता से लग गई सेवा में
644