अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा रुपया में गिरावट बीते काफी दिनों से जारी है और रुपया लगातार नए निचले स्तर को छूता जा रहा है। हालांकि, बुधवार को शुरुआती कारोबार में इसमें नौ पैसे का सुधार देखने को मिला और यह फिलहाल 77.69 पर है। लेकिन कई दिनों की गिरावट के बाद ये सुधार बेहद मामूली है। हम आपको बता रहें हैं क्या हैं रुपये में गिरावट के कारण और किस तरह यह आम आदमी के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है?
रुपये में गिरावट के बड़े कारण
भारतीय मुद्रा रुपये में बीते दिनों से गिरावट जारी है। यह डॉलर के मुकाबले फिसलकर 77.78 तक पहुंच चुका था। इसके टूटने के कई कारण हैं, जिनमें अमेरिकी फेडरल रिजर्व की 50-आधार-बिंदु दर वृद्धि और आने वाले महीनों में और अधिक दरों में बढ़ोतरी के संकेत को बड़ा कारण माना जा रहा है। इसके अलावा विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजारों से लगातार बिकवाली करना भी इसके गिरने की बड़ी वजह है। जबकि, रूस और यूक्रेन के बीच लंबा खिंचता युद्ध और उससे उपजे भू-राजनैतिक हालातों ने भी रुपये पर दबाव बढ़ाया है।
विदेशी निवेशकों की बिकवाली का प्रभाव
विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में जब उथल-पुथल मचती है तो निवेशक डॉलर की ओर अपना रुख करते हैं। डॉलर की मांग बढ़ती है तो फिर अन्य करेंसियों पर दबाव बढ़ जाता है। दुनिया भर में अनिश्चितता की बात करें तो कोरोना महामारी और रूस-यूक्रेन में चल रहे युद्ध की वजह से आपूर्ति में रुकावट आई है, जो कि दुनियाभर में अव्यवस्था पैदा करने वाली है। जब अनिश्चितता का समय होता है तो लोग सुरक्षित ठिकाना खोजते हैं और डॉलर को एक सुरक्षित ठिकाना माना जाता है। विदेशी निवेशकों की बिकवाली से विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ता है और डॉलर की मांग बढ़ जाती है, जबकि रुपये की मांग कम हो जाती है।
81 रुपये तक रुपये के टूटने का अनुमान
रुपये में जारी गिरावट के बीच एक रिपोर्ट में विशेषज्ञों के हवाले से कहा गया है कि डॉलर के मुकाबले रुपया आने वाले दिनों में 81 के सर्वकालिक निचले स्तर पर पहुंच सकता है। यानी अभी इसमें और गिरावट दर्ज की जा सकती है। हालांकि, इस बीच उन्होंने संभावना जताई है कि इस स्तर तक टूटने के बाद रुपये में फिर से बढ़ोतरी संभव है। गौरतलब है कि रुपये के टूटने से कई क्षेत्रों में बड़ा असर देखने को मिलता है। इसमें तेल की कीमतों से लेकर रोजमर्रा के सामनों की कीमतों में इजाफा दिखाई देगा।
गौरतलब है कि भारत तेल से लेकर जरूरी इलेक्ट्रिक सामान और मशीनरी के साथ मोबाइल-लैपटॉप समेत अन्य गैजेट्स के लिए दूसरे देशों से आयात पर निर्भर है। अधिकतर मोबाइल और गैजेट का आयात चीन और अन्य पूर्वी एशिया के शहरों से होता और अधिकतर कारोबार डॉलर में होता है। अगर रुपये में इसी तरह गिरावट जारी रही तो देश में आयात महंगा हो जाएगा। विदेशों से आयात होने के कारण इनकी कीमतों में इजाफा तय है, मतलब मोबाइल और अन्य गैजेट्स पर महंगाई बढ़ेगी और आपको ज्यादा खर्च करना होगा। साथ ही बता दें कि भारत अपनी जरूरत का 80 फीसदी कच्चा तेल विदेशों से खरीदता है। इसका भुगतान भी डॉलर में होता है और डॉलर के महंगा होने से रुपया ज्यादा खर्च होगा। इससे माल ढुलाई महंगी होगी, इसके असर से हर जरूरत की चीज पर महंगाई की और मार पड़ेगी।