महाराष्ट्र में अचानक से बदले राजनीतिक घटनाक्रम के बीच बगावत के सुर तो सरकार बनने के कुछ महीनों बाद से ही बाहर आने लगे थे। सरकार बनने के साथ ही कोरोना की दस्तक ने बगावत के पनपे हालातों को बहुत दिनों तक दबाए रखा, लेकिन जब स्थिति बेकाबू होती गई तो राजनीतिक संकट का सबसे बड़ा विस्फोट हो गया। महाराष्ट्र सरकार में हालात ऐसे हो गए थे कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात न कर पाने वाले विधायक सीधे एकनाथ शिंदे के पास अपनी समस्याओं को लेकर जाने लगे थे। ठाकरे परिवार ने शिंदे की पकड़ देखकर उनके भी हाथ बांध दिए थे। फिलहाल हालात और मौके की नजाकत के साथ राजनैतिक उठापटक तेज़ होने लगी और अब नतीजा सबके सामने है।
उद्धव को नहीं लग पाई भनक
बीते कुछ दिनों से महाराष्ट्र में अचानक बदले राजनैतिक घटनाक्रम की वजह कुछ भी नई नहीं है। महाराष्ट्र के राजनीतिक विश्लेषक तरुण शितोले कहते हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधायकों की नाराजगी का अंदाजा था। क्योंकि विधायकों की शिकायतों का अंबार उद्धव ठाकरे के पास लगातार पहुंच रहा था। शुरुआत में तो कुछ शिकायतों का मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने निराकरण किया, लेकिन बाद में ज्यादातर विधायकों की अलग-अलग तरह की शिकायतों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। वे कहते हैं कि महाराष्ट्र के बजट सत्र में शिवसेना के विधायक और कुछ मंत्रियों ने फिर से गठबंधन में चल रही सरकार के सहयोगी दलों की शिकायत की तो मुख्यमंत्री ने उसे अनसुना कर दिया। शितोले कहते हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को विधायकों की नाराजगी का अंदाजा तो था, लेकिन उन्हें इस बात की भनक बिल्कुल नहीं लगी कि बाला साहब ठाकरे की तैयार की गई शिवसेना का कोई भी शिवसैनिक इतना विरोध तो कभी नहीं करेगा कि वह पार्टी को ही दो हिस्सों में बांटने की तैयारी कर ले। और यही सबसे बड़ी गलती उद्धव ठाकरे से हो गई। महाराष्ट्र के राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे विधायकों के लिए ‘नॉट रिचेबल’ मुख्यमंत्री के तौर पर जाने जाने लगे।
एनसीपी के नेताओं की बढ़ रही थी पूछ
महाराष्ट्र में शिवसेना के एक विधायक ने अमर उजाला डॉट कॉम से फोन पर हुई बातचीत में बताया की वह सरकार बनने के कुछ दिनों बाद से अपने इलाके के लिए जारी किए जाने वाले फंड और कामों में आने वाली दिक्कतों से बहुत ज्यादा परेशान थे। वह कहते हैं अपनी समस्याओं के बारे में जब उन्होंने एक-दो मौकों पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से जिक्र किया, तो उन्होंने उनकी समस्या को सुनकर अनदेखा कर दिया। वह कहते हैं कि यह समस्या सिर्फ उनकी नहीं बल्कि महाराष्ट्र के कई शिवसेना विधायकों की थी। उनके विधानसभा क्षेत्र में एनसीपी और कांग्रेस के कार्यकर्ता अपने नेताओं के माध्यम से मिलने वाले सरकारी फंड से न सिर्फ काम करा लेते थे, बल्कि जिस काम के लिए शिवसेना के विधायक लंबे समय से प्रयास करते थे उनको भी सरकार में शामिल सहयोगी दल के नेता काम कराकर उनके वोट बैंक में सेंधमारी कर रहे थे। विधायक का आरोप था कि उपमुख्यमंत्री शिवसेना के विधायकों को फंड जारी नहीं करते हैं। जबकि एनसीपी के नेताओं के लिए लगातार फंड जारी होते रहते थे। मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे यह सब जानने के बाद भी अंजान बने हुए थे। उक्त विधायक का कहना था कि एनसीपी और कांग्रेस के बड़े नेता वही काम कर रहे हैं जो शिवसेना के विधायक और मंत्री चाहते हैं। तो ऐसे में जनता शिवसेना के साथ क्यों जुड़ेगी। यह तो एक तरीके से जानबूझकर शिवसेना को कमजोर करने का तरीका है। जो एनसीपी और कांग्रेस कर रही है। जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी है बावजूद इसके इस पर कोई एक्शन नहीं ले रहे हैं। वे कहते हैं कि सरकार बनने के कुछ महीने बाद से ही इस बात की नाराजगी मुख्यमंत्री से व्यक्त की जाने लगी थी। लेकिन कोरोना की वजह से कोई बहुत बड़ा एक्शन नहीं लिया जा सका था। अब जब पानी सिर से ऊपर निकल गया है तो यह सब सामने आ रहा है।
शिंदे के मंत्रालय में हस्तक्षेप कर रहे थे आदित्य
महाराष्ट्र की राजनीति को करीब से समझने वाले रामभाऊ शिंदे बताते हैं कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के एक तरह से हाथ बांध दिए थे। वह कहते हैं इसके पीछे दो कारण थे। पहला कारण तो यह था कि खुद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे विधायक और नेताओं के लिए नॉट रीचेबल मोड में जा चुके थे। महाराष्ट्र में शिवसेना के विधायक और मंत्री जब मुख्यमंत्री से नहीं मिल पाते थे तो एकनाथ शिंदे से मिलकर अपनी समस्याओं के निराकरण को लेकर बातचीत करते थे। यह बात मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और आदित्य ठाकरे को अखरने लगी थी। दूसरी और अहम बात यह मानी जा रही है कि एकनाथ शिंदे के पास महाराष्ट्र का सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय शहरी विकास मंत्रालय था। इस मंत्रालय में काम करने के लिए एकनाथ शिंदे को जो खुला हाथ मिलना चाहिए था वह बांध दिया गया था। सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि उनके मंत्रालय में सबसे ज्यादा हस्तक्षेप मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे और उनके करीबियों का होने लगा था। यही वजह थी कि शिंदे और ठाकरे परिवार के बीच दूरियां बढ़ने लगीं। जानकारों का कहना है क्योंकि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की बीमारी और फिर विधायकों से कम जनसंवाद के चलते एकनाथ शिंदे के साथ शिवसेना के विधायकों के बीच भरोसा ज्यादा बढ़ने लगा। चूंकि एकनाथ शिंदे ने कुछ मौकों पर एनसीपी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार न चलाने के लिए शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे पर दबाव भी बनाया था। वही बात अब शिवसेना के ज्यादातर विधायक करने लगे तो महाराष्ट्र के राजनैतिक हालात बदलने लगे। सरकार बनने के बाद से ही अंदर ही अंदर बगावत के दबे हुए स्वर महाराष्ट्र में विधान परिषद और राज्य सभा के चुनावों के साथ मुखर हो गए। राजनीतिक विश्लेषक तरुण शितोले कहते हैं कि सरकार बनने के कुछ समय बाद से ही बगावत के सुरों के बीच चल रही महाराष्ट्र सरकार में यह बड़ा विस्फोट हो गया। अब जो हालात हैं वे सबके सामने हैं।