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दिल्ली के ‘गुंगाराम’ कहते हैं; मोर्चा विफल; (यानी सफल!)

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शिवसेना सहित महाराष्ट्र विकास आघाड़ी का एक जबरदस्त विशाल मोर्चा शनिवार को मुंबई में निकला। महाराष्ट्र के कोने-कोने से लाखों महाराष्ट्र प्रेमी ‘जय महाराष्ट्र’ का नारा लगाते हुए मुंबई की सड़कों पर उतर आए। संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई में इतने विशाल मोर्चे निकल चुके हैं। शिवसेनाप्रमुख के नेतृत्व में महाराष्ट्र ने मराठी लोगों के न्याय-अधिकारों के लिए इतने विशाल मोर्चे, उफनते जनसागर का अनुभव किया है। लंबे समय बाद मुंबई में महाराष्ट्र का स्वाभिमान जगाने के लिए ऐसा मोर्चा निकाला गया। इस मोर्चे में मराठी लोगों का संयमी और उतना ही रौद्र रूप देखा गया। अब प्रदेश के उपमुख्यमंत्री श्री फडणवीस आदि मंडली ने कहा, ‘मोर्चा फेल हो गया, यह असफल हो गया। यह महामोर्चा नहीं बल्कि नैनो मोर्चा था!’ जिन्हें इस मोर्चे का भव्य स्वरूप नहीं दिखा, उनकी आंखों पर ‘मराठी द्वेष’ का जाला चढ़ गया है, ऐसा ही कहना होगा। मुंबई में शनिवार का भव्य मोर्चा कोई चुनाव जीतने वाली ईवीएम का कारनामा नहीं था। लाखों लोग खुद के खर्च पर मुंबई की सड़कों पर क्यों उतरे? पहला यह कि राज्य में लगातार महाराष्ट्र की पूजनीय हस्तियों का अपमान किया जा रहा है। छत्रपति शिवराय, महात्मा फुले, सावित्रीबाई फुले, डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का अपमान किया जा रहा है और वहीं राज्य की सरकार मूक-बधिर बनी बैठी है। क्योंकि दिल्ली ने उन्हें गुंगी (मदहोशी) का इंजेक्शन देकर भेजा है। इस गुंगी का असर कम होते ही अगला इंजेक्शन देकर सरकार को सुला दिया जाता है। ऐसी मदहोशी में बधिर हुए लोगों के पृष्ठभाग पर लात मारकर जगाने के लिए मुंबई में यह मोर्चा पूरे जोश के साथ निकला था। फिर यह मोर्चा ‘विफल’ था, ऐसा कहना मतलब इस बात का संकेत माना जाएगा कि अभी गुंंगी का असर कम नहीं हुआ है और ऐसे लोगों की बची हुई मदहोशी नागपुर अधिवेशन में उतारनी होगी। मोर्चा सफल रहा और जनता गुस्से में है, इसे सरकार को स्वीकार करना चाहिए। कुछ दिनों पहले महाराष्ट्र के मंत्री चंद्रकांत पाटील पर डॉ. आंबेडकर का अपमान करने के मामले में एक दलित कार्यकर्ता ने स्याही फेंकी। उस कार्यकर्ता पर हत्या की कोशिश करने जैसी खतरनाक धाराएं लगाकर सरकार ने साबित कर दिया कि वह डरी हुई है। उस दिन के बाद से महाराष्ट्र के सभी मंत्रियों की सुरक्षा ‘डबल’ कर दी गई है। खुद चंद्रकांत पाटील दोबारा स्याही न फेंक दी जाए, इस खौफ से चेहरे पर प्लास्टिक का बड़ा मास्क लगाकर घूम रहे हैं। राज्य के मंत्रियों पर डर के साए में घूमने की नौबत आए, इसे कौन-सा संकेत माना जाए? मोर्चा फेल हुआ, ऐसा कहनेवालों के लिए यह जनता का सवाल है। महाराष्ट्र की मौजूदा मिंधे सरकार के विरोध में मोर्चा निकला, यह लड़ाई और संघर्ष का पहला कदम है। भविष्य में ऐसे कई पैरों के नीचे ये सरकार रौंदी जाएगी। मोर्चा हाथी के पांव की तरह चल रहा था। महाराष्ट्र के दुश्मन इसके आगे इसी हाथी के पैर के नीचे कुचले जाएंगे, ऐसा आक्रोश जनता के मन में है। शिवराय का अपमान करनेवाले भाजपा के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी, फडणवीस-शिंदे सरकार के श्रद्धेय हैं। फडणवीस आदि मंडली इन अपमानकर्ताओं के इतना प्रेम में डूबी हुई है कि भगतसिंह कोश्यारी का अश्वारूढ़ पुतला बनाकर ये लोग समृद्धि महामार्ग के प्रवेश द्वार पर स्थापित करके इनके नाम से कोई महाराष्ट्र गीत की रचना करेंगे क्या, ऐसा अब जनता को लगने लगा है। महाराष्ट्र के महापुरुषों का अपमान निगलकर डकार भरनेवाली सरकार महाराष्ट्र प्रेमी मोर्चाकरों का इस तरह अपमान कर रही है। मोर्चा विफल हुआ, ऐसा छाती पीटकर विकट हास्य कर रहे हैं। यह एक प्रकार की विकृति है। महाराष्ट्र से उद्योग छीने जाते हैं, कर्नाटक के मुख्यमंत्री सीमा मामले में महाराष्ट्र को तमाचा मारते हैं और उसके बदले में फडणवीस-शिंदे दिल्ली जाकर गुंगी की दवा लेकर आते हैं। महाराष्ट्र ऐसे ‘गुंंगाराम’ के हाथों सुरक्षित नहीं है और इस गुंगाराम की नींद उड़ने के आसार दिखाई नहीं दे रहे हैं। लेकिन उसे उड़ाना ही होगा। मुंबई का महामोर्चा नागपुर शीतकालीन सत्र से पहले निकला, इसलिए उसका असर नागपुर में आज से शुरू होनेवाले विधानमंडल शीतकालीन अधिवेशन में दिखाई देगा, यह तो है ही लेकिन इस सरकार में अंदरूनी कलह भी एक मसला है। महाराष्ट्र सरकार में आज सब कुछ ऑलवेल नहीं है। चालीस बनाम एक सौ पांच का अंदरूनी संघर्ष उफनकर आया है। इस संघर्ष के कारण राज्य का प्रशासन बेबस है। राज्य के विकास की बागडोर मन माफिक बिल्डरों और लैंड डीलर्स के हाथों सौंपकर मुख्यमंत्री अलग तरीके से कलक्टरी कर रहे हैं। लूट का हिस्सा दिल्ली के चरणों में अर्पित करके कुर्सी बचा रहे हैं। लूट का हिस्सा बागी और बेईमानों में बांटा जा रहा है। शिवसेना तोड़ने के लिए इसी लूट के हिस्से का उपयोग किया गया। यानी उस लूट से दलाल, ठेकेदार आपके गले लगें लेकिन स्वाभिमानी जनता शिवराय, डॉ. आंबेडकर, महात्मा फुले और महाराष्ट्र के अपमान के खिलाफ सड़क पर उतरी। जनता खोके से नहीं बिकती। मुंबई में शनिवार को हुआ महामोर्चा नुकीला और धारदार था। यह मोर्चा न निकले, इसके लिए ‘गुंगाराम’ सरकार ने नाना प्रकार के हथकंडे अपनाए। इस गैरकानूनी सरकार ने नियम-कानून, शर्तों के कागजी बंडल नचाए। फिर भी महामोर्चा निकला ही। इसके आगे भी आंदोलनों की तोपें दनदनाती ही रहेंगी। फेल, गैरकानूनी सरकार क्या कहती है, इस पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। मोर्चा सफल हुआ। इसका सबसे बड़ा सबूत यानी फडणवीस ने तिलमिलाकर कहा कि मोर्चा फेल हुआ! इसका ही मतलब मोर्चा भव्य था। सफल हुआ और सरकार डर गई है। इस मोर्चे ने मिंधे-फडणवीस सरकार को नोटिस दिया है। आपकी अवैध इमारत ढह रही है!

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