वडोदरा के स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां पहले वट (बरगद) के पेड़ बहुत ज्यादा संख्या में होते थे, इसलिए इस जगह का नाम ‘वट का उदर’ यानी वडोदरा पड़ गया। आबादी बढ़ने के साथ खेती और सड़कों के लिए जमीन की जरूरत में इन पेड़ों की बहुत ज्यादा कटाई हुई और अब यहां बरगद के बड़े-बड़े पेड़ कुछ ही जगहों पर दिखाई पड़ते हैं। भाजपा की स्थिति भी इस क्षेत्र में इन बरगद के पेड़ों जैसी ही हो गई है। वह अपने गढ़ वडोदरा की कुछ जगहों पर काफी मजबूत है, तो कुछ जगहों पर उसे बागियों और कांग्रेस उम्मीदवारों से कड़ी टक्कर का सामना करना पड़ रहा है। वर्ष 2014 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र भाई मोदी ने दो जगहों से लोकसभा का चुनाव लड़ा था। पूर्वांचल के वाराणसी के साथ-साथ उन्होंने भाजपा के गढ़ वडोदरा से भी अपना भाग्य आजमाया था। वाराणसी में उन्होंने अरविंद केजरीवाल को चार लाख से ज्यादा वोटों से हराया, तो वड़ोदरा में कांग्रेस नेता मधुसूदन मिस्त्री को 5.70 लाख वोटों से मात दी। यूपी और पूरे पूर्वांचल की राजनीति में वाराणसी का महत्व देखते हुए उन्होंने वाराणसी की सीट बरकरार रखी और वड़ोदरा की सीट छोड़ दी। उन्होंने अपने गृहराज्य के मतदाताओं पर अपने लिए प्यार बरकरार रहने का भरोसा था। वड़ोदरा के मतदाताओं ने उनका भरोसा कायम भी रखा। भाजपा ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में यहां से दस में नौ सीटों पर कब्जा किया। इसके पहले चुनाव में भी उसने इसी दर से जीत हासिल की थी। वडोदरा के चेतन सिंह ने अमर उजाला को बताया कि पीएम मोदी का वड़ोदरा पर भरोसा अनायास ही नहीं था। मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने इस क्षेत्र के विकास के लिए बहुत काम किया था, यही कारण था कि भाजपा यहां अजेय बनती चली गई। ज्योति ग्राम योजना के अंतर्गत गांवों में 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराना हो या गांव-गांव तक पक्की सड़कों का विकास, मोदी ने हर गांव तक विकास का रास्ता पहुंचा दिया। यही कारण रहा कि वे इस क्षेत्र में भाजपा लगातार मजबूत होती गई। पीएम बनने के बाद भी नरेंद्र मोदी का लगाव इस क्षेत्र के लिए बना रहा और वे राज्य स्तर के नेताओं के माध्यम से क्षेत्र पर बराबर नजर रखते रहे। लेकिन बाद में राज्य स्तर के कुछ नेताओं की आपसी गुटबाजी में भाजपा की इस एरिया में उसके लिए चुनौती बढ़ने लगी। अपनी पकड़ बरकरार रखने के लिए भाजपा ने यहां छह बार के विधायक रहे मधु श्रीवास्तव का टिकट काट दिया। इससे क्षेत्र के लोगों में नाराजगी है। कार्यकर्ताओं में भी उत्साह की कमी आ गई है। भाजपा को कार्यकर्ताओं की यह नाराजगी भारी पड़ सकती है। वाघोड़िया से अश्विन पटेल भाजपा के प्रत्याशी हैं। इस बार उन्हें भाजपा के बागी प्रत्याशियों से ही तगड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। मधु भाई श्रीवास्तव के साथ साथ भाजपा के पुराने कार्यकर्ता रहे धर्मेन्द्र सिंह बघेल मैदान में निर्दलीय के रूप में किस्मत आजमा रहे हैं। इससे भाजपा की राह कठिन हो गई है। इसी तरह कुछ और सीटों पर भी भाजपा के बागी उसे नुकसान पहुंचा सकते हैं। पार्टी बागियों के कारण सकते में है।
कुछ जगहों पर भाजपा के लिए खतरा बने बागी
चेतन सिंह बताते हैं कि क्षेत्र में भाजपा ने विकास का काफी काम किया। गांव-गांव तक कंक्रीट की सड़कें, बिजली की उपलब्धता और रोजगार के अवसर विकसित करने के कारण इस क्षेत्र में भाजपा बहुत मजबूत हो गई। हर गांव के आसपास प्राथमिक-माध्यमिक स्तर के स्कूल, पीने के पानी की उपलब्धता और किसानों के लिए बैंक और कृषि उपकरणों की उपलब्धता कराने के कारण इस क्षेत्र का खूब विकास हुआ। यही कारण है कि भाजपा इस स्थान पर बहुत मजबूत हो गई, लेकिन बागियों से उसे कुछ जगहों पर खतरा जरूर पैदा हो गया है। दिनेश सिंह राजपूत ने बताया कि कांग्रेस के समर्थक भी इस क्षेत्र में पर्याप्त संख्या में हैं और कांग्रेस प्रत्याशियों को काफी वोट भी मिलते हैं, लेकिन पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के द्वारा कम ध्यान दिए जाने और राज्य स्तर के नेताओं की उदासीनता में कांग्रेस यहां से कमजोर पड़ती गई है। कांग्रेस कार्यकर्ता अब भी मानते हैं कि यदि नेतृ्त्व ध्यान दे, तो इस क्षेत्र में पार्टी की तस्वीर बदल सकती है।