नई दिल्ली
उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल एक्सप्रेसवे काफी सुर्खिया बटोर रहा है। खासकर, इस पर 3.4 किमी का एयरस्ट्रिप आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। हालांकि, पूरे एक्सप्रेसवे की लंबाई 431 किमी है जो नौ जिलों से होकर गुजरती है। यह एक्सप्रेसवे न केवल रफ्तार को गति देगा बल्कि इससे इलाके में उद्योग-धंधों की भी मजबूती मिलेगी। प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार और उनकी पार्टी बीजेपी यह उम्मीद भी लगाए बैठेगी कि इससे अगले विधानसभा चुनाव में पूर्वांचली वोटरों को साधने में भी मदद मिलेगी। हालांकि, उत्तर प्रदेश की अब तक की चुनावी राजनीति कुछ अलग कहानी बयां करती है।
गजब है एक्सप्रेसवे का संयोग
दिल्ली से बिहार के बीच उत्तर प्रदेश का सफर आसान और तेज बनाने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने एक्सप्रेसवे बनाने की शुरुआत की थी। वर्ष 2007 के चुनाव में मायावती ने पूर्वांचली वोटरों को लुभाने में कामयाबी हासिल की थी और लंबे समय बाद प्रदेश को एक दल की मजबूती सरकार मिली। मायावती ने अपने कार्यकाल में नोएडा से आगरा तक यमुना एक्सप्रेसवे का निर्माण कराया। हालांकि, वो इसका उद्घाटन नहीं कर सकीं और अगली बार 2012 के चुनाव में उनकी सरकार चली गई।
मायावती ने बनाया था यमुना एक्सप्रेसवे
मायावती के बनाए यमुना एक्सप्रेसवे का उद्घाटन 2012 के विधानसभा में बाजी मारने वाली समाजवादी पार्टी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किया। अखिलेश ने भी यूपी के एक एक छोर से दूसरे छोर तक एक्सप्रेसवे का जाल बिछाने के विजन पर काम आगे बढ़ाया। उन्होंने यमुना एक्सप्रेसवे के आगे आगरा से लखनऊ तक का एक खंड बनाया और इस पर नया एक्सप्रेसवे बनाने का काम शुरू किया। मायावती से उलट अखिलेश ने न केवल आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे की नींव रखी बल्कि आगामी विधानसभा चुनाव से एक साल पहले 2016 में ही इसका उद्घाटन भी कर दिया।
अखिलेश यादव ने भी बढ़ाया कारवां
अपने पिता और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन से पहले आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का उद्घाटन हो गया और इस पर आवाजाही शुरू हो गई। अखिलेश ने भले ही नींव डालने और उद्घाटन करने में मायावती से इतर काम किया हो, लेकिन उनके लिए भी चुनावी नतीजा मायावती की तरह ही रहा है। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सत्ता से बेदखल हो गई।
अखिलेश की सत्ता नहीं बचा पााया था आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे
2017 के विधानसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करके उत्तर प्रदेश की सरकार में आई बीजेपी ने एक्सप्रेसवे निर्माण का काम जारी रखा। उसने राजधानी लखनऊ से बिहार की सीमा गाजीपुर तक के बचे खंड पर एक्सप्रेसवे बनाया। देश के सबसे लंबे पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखे जाने को लेकर समाजवादी पार्टी और बीजेपी एक-दूसरे के विरुद्ध दावे करती है। अखिलेश यादव ने ट्वीट कर कहा कि उन्होंने अपनी सरकार के समय 22 दिसंबर 2016 को इस एक्सप्रेसवे की नींव रखी थी। उन्होंने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के शिलान्यास की एक तस्वीर ट्विटर पर साझा की जिसमें उनके समेत सपा के कुछ वरिष्ठ नेता नजर आ रहे हैं।
क्या इस बार टूटेगा ट्रेंड?
हालांकि, बीजेपी का कहना है कि पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव उसकी सरकार ने रखी है। दरअसल, मई 2015 में अखिलेश सरकार ने लखनऊ-आजमगढ़-बलिया एक्सप्रेसवे की घोषणा की। 2017 में बीजेपी की सरकार बनने के बाद इस एक्सप्रेसवे का रूट बदलकर लखनऊ-आजमगढ़-गाजीपुर कर दिया गया। फिर 14 जुलाई, 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस एक्सप्रेसवे की नींव रखी। अखिलेश की तरह योगी सरकार ने भी जिस पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखी तो इसका उद्घाटन भी किया। अब सवाल उठता है कि क्या योगी आदित्यनाथ एक्सप्रेसवे बनाने वाली सरकार के अगले चुनाव में हारने वाले ट्रेंड को तोड़ पाएंगे?
ध्यान रहे कि पूर्वांचल की 117 सीटें चुनाव में किसी का भी पलड़ा भारी करने और किसी की हालत पस्त करने का दमखम रखती हैं। साल 2007 में बीएसपी ने पूर्वांचल में बड़ी जीत हासिल की तो मायावती पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रहीं। इसके बाद साल 2012 में पूर्वांचल में बड़ी जीत हासिल कर अखिलेश यादव ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। साल 2017 में पूर्वांचल के लोग बीजेपी के साथ खड़े हुए तो पार्टी ने यूपी में प्रचंड बहुमत हासिल किया। बीएसपी में 10 साल से सत्ता की दूरी की छटपटाहट है तो एसपी 5 साल से सत्ता की दूरी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। वहीं कांग्रेस 31 साल का सूखा खत्म करने के लिए बेचैन है। स्वाभाविक है कि बीजेपी और योगी सरकार इस पूर्वांचल एक्सप्रेस से बड़ी उम्मीदें लगाई होंगी।