मैनपुरी में हो रहे लोकसभा उपचुनाव में बसपा चुनाव न लड़कर भी अपने जनाधार का आधार तैयार कर रही है। यही वह लोकसभा क्षेत्र है जहां पर भाजपा और सपा की लड़ाई के बीच में मायावती का बसपा का वोट बैंक तय करेगा कि यहां पर सांसद कौन बन रहा है। दरअसल मैनपुरी में सवा लाख से ज्यादा वोट जाटव समुदाय का और सत्तर हजार से ज्यादा वोट कठेरिया समेत अलग-अलग जातियों का है। सियासी मामलों के जानकारों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी का कोर वोट बैंक मैनपुरी के चुनावों में दशा और दिशा तय करेगा। समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी में लोकसभा का उपचुनाव हो रहा है। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव इस सीट से चुनाव लड़ रही हैं। जबकि भाजपा ने रघुराज शाक्य को चुनावी मैदान में उतारा है। राजनैतिक विश्लेषक एसएन शुक्ला कहते हैं कि इस सीट पर सबसे रोचक मामला बसपा प्रत्याशी के न उतरने से हुआ है। शुक्ला का कहना है कि मैनपुरी में चुनाव न लड़कर भी बहुजन समाज पार्टी अपने जनाधार का सबसे बड़ा आधार तैयार कर रही है। वह कहते हैं कि मैनपुरी सीट पर बहुजन समाज पार्टी का बड़ा वोट बैंक है। क्योंकि इस सीट पर इस चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का कोई प्रत्याशी नहीं है। इसलिए बसपा का कोर वोट बैंक जिस दिशा में जाएगा चुनाव में पलड़ा उसी का भारी होना तय माना जा रहा है। शुक्ला कहते हैं कि जब बीते चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन था, तो उसमें मुलायम सिंह यादव की जीत का अंतर 2014 के लोकसभा चुनावों से कम हो गया था। इसलिए यह कहना आसान नहीं है कि मैनपुरी का चुनाव एकतरफा है। वहीं बसपा से जुड़े सूत्रों का कहना है कि वह चुनाव में नहीं है, बावजूद इसके अपने वोट बैंक का बड़ा आधार तो नाप ही रहे हैं। बसपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि लोकसभा के चुनावों में बसपा ने जब-जब यहां से चुनाव लड़ा, तब-तब उसे मिला वोट उसके कोर वोट बैंक की संख्या के हिसाब से ही था। ऐसे में इस बार बसपा से जुड़ा हुआ पूरा वोट बैंक जिस दिशा में एक साथ जाएगा, चुनावी परिणाम उसी लिहाज से तय होने का अनुमान लगाया जा रहा है। हालांकि चुनावी आंकड़े यही बताते हैं कि जब-जब उपचुनाव हुए और बसपाने यहां पर अपना प्रत्याशी नहीं उतारा, तब-तब भारतीय जनता पार्टी के वोट बढ़े हैं। हालांकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश कि राजनीति को बहुत करीब से समझने वाले ओम प्रकाश त्यागी कहते हैं कि इस बार मैनपुरी में होने वाला चुनाव नेताजी के न रहने के बाद सहानुभूति का है। इसलिए समाजवादी का पलड़ा तो निश्चित तौर पर सहानुभूति की लहर में भारी माना जा रहा है। हालांकि त्यागी कहते हैं कि जब सियासी जमीन पर राजनीतिक पैमाइश होती है, तो उसमें जातिगत समीकरणों के आधार पर ही चुनावी परिणाम की फसल उगती है। इसलिए मैनपुरी में होने वाले चुनावों में सहानुभूति के साथ जातिगत समीकरणों का बड़ा अहम योगदान दिखने वाला है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि मैनपुरी में जिस तरीके से मुलायम सिंह यादव ने न सिर्फ काम किया बल्कि घर-घर तक पैठ बनाई, वही लोग अब इस बार डिंपल यादव को उनकी सीट से दिल्ली पहुंचा रहे हैं। वह कहते हैं कि इस सीट पर चुनाव जातिगत समीकरणों के आधार पर हो ही नहीं रहा है। सियासी मामलों के जानकार जटाशंकर सिंह कहते हैं कि कहने को तो मैनपुरी सीट पर समाजवादी पार्टी का ही दबदबा रहा है। लेकिन 2019 में नेताजी मुलायम सिंह यादव को मिली जीत का अंतर नए राजनैतिक समीकरणों की कहानी कह रहा है। सिंह कहते हैं कि चुनाव में समाजवादी पार्टी के लिए इस बार सहानुभूति तो सबसे आगे चल ही रही है, लेकिन बीते चुनावों में बसपा का वोट बैंक हार-जीत का एक बड़ा आधार बनता रहा है। वह कहते हैं कि क्योंकि मायावती उपचुनावों में शिरकत नहीं करती हैं, इसलिए उनके वोटर के पास विकल्प खुले होते हैं कि वह जहां चाहे वहां जाएं। हालांकि ऐसे हालातों में सभी दलों के पास बसपा के कोर वोट बैंक में सेंधमारी करने की खुली आजादी भी होती है। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता बताते हैं कि उपचुनावों में भले ही वह शिरकत ना करें, लेकिन वह अपने वोट बैंक के जनाधार से सियासी हवाओं का आधार तो तय ही कर लेते हैं। उनका कहना है कि मैनपुरी में होने वाले चुनाव में भी उनकी पार्टी अपने इसी जनाधार के आधार पर अगले मुख्य चुनावों की रणनीति भी बनाने वाली है।
मैनपुरी में उपचुनाव न लड़कर भी मायावती तैयार कर रहीं अपने जनाधार का आधार! ये हैं समीकरण
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