गुजरात के मोरबी पुल हादसे पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई है। कोर्ट ने पुल की मरम्मत के लिए ठेका देने के तरीकों पर भी सवाल खड़े किए हैं। कोर्ट ने मुख्य सचिव को तलब कर पूछा है कि इतने महत्वपूर्ण कार्य के लिए टेंडर क्यों नहीं आमंत्रित किए गए थे? प्रधान न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने सुनवाई के दौरान यह भी पूछा कि इस महत्वपूर्ण कार्य के लिए समझौता मात्र डेढ़ पेज में कैसे पूरा हो गया? बता दें, मोरबी पुल हादसे में 135 लोगों की जान चली गई थी व अन्य कई घायल हो गए थे। इसके बाद हाईकोर्ट ने इस मामले को संज्ञान लिया था और छह विभागों से जवाब तलब किया था। सुप्रीम कोर्ट सोमवार को मोरबी पुल ढहने की घटना की जांच के लिए एक न्यायिक आयोग के गठन की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने पर सहमत हो गया है। मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की पीठ ने जनहित याचिका दायर करने वाले वकील विशाल तिवारी की इस दलील पर गौर किया कि मामले की तत्काल सुनवाई की जरूरत है। बेंच ने पूछा, हमें कागजात देर से मिले। हम इसे सूचीबद्ध करेंगे। अत्यावश्यकता क्या है? वकील ने कहा, इस मामले में अत्यावश्यकता है क्योंकि देश में बहुत सारे पुराने ढांचे हैं, इस बात पर जोर देते हुए कि मामले को प्राथमिकता से सुना जाए। गुजरात के मोरबी में मच्छू नदी पर बना ब्रिटिश काल का पुल ढहने से मरने वालों की संख्या 134 हो गई है। तिवारी ने याचिका में कहा कि दुर्घटना सरकारी अधिकारियों की लापरवाही और घोर विफलता को दर्शाती है। जनहित याचिका में कहा गया है कि पिछले एक दशक में हमारे देश में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जहां कुप्रबंधन, कर्तव्य में चूक और रखरखाव की लापरवाही के कारण बड़ी संख्या में लोगों के हताहत होने के मामले सामने आए हैं जिन्हें टाला जा सकता था। राज्य की राजधानी गांधीनगर से लगभग 300 किमी दूर स्थित एक शताब्दी से अधिक पुराना पुल व्यापक मरम्मत और नवीनीकरण के बाद त्रासदी से पांच दिन पहले फिर से खुल गया था। 30 अक्टूबर को शाम करीब 6.30 बजे यह ढह गया।
मोरबी हादसे में गुजरात सरकार को उच्च न्यायालय की फटकार, कहा- होशियारी मत दिखाइए
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