युसुफ मंसुरी । महाराष्ट्र में इलेक्शन का बिगुल बजते ही हमारे शहर के लीडर आन अपने-अपने कॉल से ऐसे बाहर निकल आए हैं जैसे पहली बारिश के गिरते ही मेंढक और केकड़े निकल आते हैं टिकट फाइनल होने तक नक्शा नफ्सी का आलम था और टिकट मिलते ही ऐसी राहत महसूस करते हैं जैसे इमरजेंसी हालात में जरूरत पूरी होने के बाद होती है जो लोग टिकट हासिल करने में कामयाब रहे वह अपनी पार्टी के गुणगान करते नहीं थक रहे और जिनको पार्टी ने लात मार दी अचानक उन्हें पार्टी की खराबी या नजर आने लगी और वह कूदकर दूसरे खेमे में चले गए वैसे इन सियासत दानों की मिसाल उन बंदरों की तरह है जो कभी अपना आशियाना नहीं बना पाता इसीलिए इनकी ना तो दोस्ती मुस्तकिल होती है और ना ही दुश्मनी इलेक्शन से लेकर वोटिंग के दिन तक अगर किसी की दुर्गा बनती है तो वह जनता की और क्यों ना हो इस दौरान सबसे ज्यादा एक्टिव यही होते हैं यह अपने पसंदीदा लीडर के लिए जानकी बाज़ी तक लगा देते हैं रिश्तेदारी और पुरानी दोस्ती को कुर्बान कर देते हैं मगर हासिल क्या होता है निल बटे सन्नाटा यह मौकापरस्त लीडर कुर्सी और रुपयों की लालच में अपने कार्यकर्ताओं की भावनाओं का कत्लेआम करते हैं अब स्टेज पर कौम और मिल्लत के नाम पर मगरमच्छ के आंसू बहाए जाएंगे फिरका प्रस्तो का ख्वाब दिखाकर कौम को एक होने का पैगाम दिया जाएगा और इलेक्शन के बाद जब जोड़-तोड़ की सियासत शुरू होगी तो यह अपनी कीमत लगा कर खरीदारों का इंतजार करेंगे और हमारे जैसे सीधे-साधे कार्यकर्ता यह कहकर दिल को तसल्ली दे देंगे कोई ना कोई बात नहीं होगी वरना भाई ऐसा नहीं करते अब इन बेवकूफ को कौन समझाए भावनाओं का यह खेल तो बरसों पुराना है मगर अब ज्यादा हो गया है यह मौकापरस्त सियासत दा अपनी मौका परस्ती से तरक्की की सीढ़ियां चढ़ते चले जाते हैं और हम वहीं रह जाते हैं जहां से चले थे मेरे दोस्तों यही वक्त है इन मौकापरस्त सियासत दानों को उनकी औकात दिखाने का वरना हमारी आने वाली नस्लें भी उनकी कठपुतली बन जाएगी इसलिए होश में वोट करें मगर और जरूर करें
वक्त है मौकापरस्त सियासत दानों को औकात दिखाने का
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