मशहूर अर्थशास्त्री और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने कहा कि भारत में विपक्ष ने फूट के कारण अपनी अधिकांश ताकत खो दी है। सेन ने कांग्रेस को सलाह देते हुए कहा कि कांग्रेस में कई संगठनात्मक समस्याएं हैं जिन्हें दूर करने की जरूरत है। एक इंटरव्यू में अमर्त्य सेन ने कहा कि जातीय जनगणना पर विचार किया जा सकता है, लेकिन उनका मानना है कि भारत को बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और लैंगिक समानता के माध्यम से वंचितों को अधिक सशक्त करने की जरूरत है।नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने कहा कि उन्हें भारत जैसे लोकतांत्रिक देश का नागरिक होने पर गर्व है, लेकिन देश की लोकतांत्रिक प्रकृति को आगे बढ़ाने के लिए कठिन मेहनत करने की जरूरत है। विपक्षी गठबंधन को लेकर उन्होंने कहा कि विपक्षी गठबंधन ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने में नाकाम रहा क्योंकि जदयू और रालोद जैसे उसके महत्वपूर्ण सहयोगी अलग हो गए। भाजपा का मुकाबला करने के लिए विपक्ष के पास क्या कमी है, इस पर अमर्त्य सेन ने कहा कि ‘विपक्ष ने फूट के कारण अपनी अधिकांश ताकत खो दी है, एकता से उसे और अधिक ताकत मिलती।’ सेन ने कांग्रेस को लेकर कहा कि, ‘कांग्रेस में कई संगठनात्मक समस्याएं हैं, जिन्हें दूर करने की जरूरत है। पार्टी के महान इतिहास से उसे प्रेरणा लेनी चाहिए।’ सेन ने भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की। सेन ने दावा किया कि निरक्षरता और लैंगिक असमानता के चलते भारत में गरीबों के लिए तरक्की करना कठिन हो गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि शासक वर्ग अमीरों के हितों का ध्यान रखता है।
‘संविधान बदलने से उद्देश्य पूरा नहीं होगा’
विपक्ष के इस दावे के बारे में पूछे जाने पर कि भाजपा सत्ता में लौटने पर संविधान बदल सकती है, इस पर सेन ने कहा कि देश का संविधान बदलने से सरकार के ‘एकल धर्म केंद्रित’ होने के अलावा कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। इससे आम नागरिकों को कोई फायदा नहीं होगा। विपक्ष के जाति जनगणना को चुनावी मुद्दा बनाने पर सेन ने कहा कि भारत को अपने वंचित वर्गों के लिए अधिक सशक्तीकरण की आवश्यकता है। क्या भाजपा अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और नागरिकता (संशोधन) अधिनियम लागू करके बहुसंख्यक हिंदुओं को एकजुट कर आर्थिक प्रदर्शन के बारे में कथित असंतोष से निपट पाएगी? इस सवाल पर अमर्त्य सेन ने कहा कि ऐसा विचार देश की धर्मनिरपेक्ष जड़ों और बहुसांस्कृतिक प्रकृति के साथ विश्वासघात होगा। ‘भारत धर्मनिरपेक्ष संविधान के साथ एक धर्मनिरपेक्ष देश है, लेकिन केवल हिंदू पहचान पर ध्यान केंद्रित कर अधिकांश हिंदुओं के लिए आसान हो सकता है परंतु यह भारत की धर्मनिरपेक्ष जड़ों और बहुसांस्कृतिक प्रकृति के साथ विश्वासघात है।’