टेक्सटाइल और डायमंड सिटी के नाम से मशहूर सूरत मौज मस्ती के लिए पहचाना जाता है। यहां राजनीति में हीरा व्यापारियों और पाटीदार समुदाय का अच्छा दखल है। 2017 में सूरत जिले के 16 विधानसभा सीटों में से 15 पर भाजपा जीती थी। केवल मांडवी विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस को जीत मिली थी। मांडवी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है। अब तक सभी सीटों पर मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच होता रहा है लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी ने सूरत जिले के 15 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में लगी है। जिले की सूरत पूर्व से आप के उम्मीदवार कंचन जरीवाला ने अपना नामांकन वापस लेने की घटना भी सुर्खियों में आई थी। सूरत में फरवरी 2021 में हुए नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने 27 सीटें जीत कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुकी है। सूरत गुजरात में सबसे अधिक युवा मतदाताओं वाला क्षेत्र है। देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई सूरत से पांच बार सांसद चुने गए थे। भाजपा ने 2017 में जीत दर्ज करने वाले तीन विधानसभा क्षेत्र चौर्यासी, उधना और कामरेज से प्रत्याशी बदल दिया है। शेष सभी सीटों पर पिछले विजेता को मौका मिला है। हारी सीट मांडवी से नए चेहरे को मौका मिला है। व्यापारियों और शहरी आबादी वाला सूरत पाटीदार आंदोलन का गढ़ रहा है। हालांकि आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल भाजपा में शामिल हो चुके हैं। 2017 चुनाव में पाटीदार आंदोलन के असर के बाद भी भाजपा सूरत में 15 सीटें जीतने में सफल रही थी। यहां बेतरतीब शहरीकरण से जुड़ी हुई समस्याएं हैं। लोग संकरे रास्ते व गलियों, साफ सफाई, अवैध निर्माण, बिजली की बढ़ती दरों की शिकायत करते हैं। सूरत की सबसे घनी आबादी वाले इलाके वारछा में रहने वाले संजय भाई ने कहा, ‘शहर में ट्रैफिक की समस्या है। सड़कें और गलियां दिनोदिन संकरी होती जा रही हैं। बच्चों के लिए सरकारी स्कूल नहीं है। पूरे वारछा में कहीं खुली जगह और मैदान नजर नहीं आते हैं। आवासीय क्षेत्र में हो रहे अवैध निर्माण के कारण पार्किंग की समस्या गहराती जा रही है।’ वारछा के घनश्याम भाई ने कहा कि रिहायशी इलाकों में अवैध रूप से व्यवसायिक भवन बनाए जा रहे हैं। इस पर रोक नहीं लगी तो कुछ समय बाद यहां चलने की जगह नहीं बचेगी। उन्होंने सरकारी स्कूलों की कमी की बात भी कही। उन्होंने दो साल पहले तक्षशिला में हुए अग्निकांड का उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार ने कोई सबक नहीं सीखा। घने बसे वारछा में अब भी एक भी फायर स्टेशन नहीं है। महेश भाई वाघाणी ने कहा, ‘नगरपालिका के डस्टबिन खरीदने पर 18 हजार रुपये खर्च करना घोर फिजुलखर्ची है। कोरोना काल में लोग दवा और दूध जैसी चीजों के लिए तरस रहे थे और नेता इससे बेफ्रिक मौज मजे में व्यस्त थे। जरूरी दवा के लिए मदद मांगने पर जवाब मिलता, वो भी दवा खोज रहे हैं।’ अहमदाबाद के बाद सबसे अधिक सीटों वाले सूरत से भाजपा की दर्शना जरदोश सांसद हैं। यह भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सीआर पाटिल का प्रभाव क्षेत्र है। सूरत दक्षिण गुजरात के सबसे बड़ा केंद्र है। सूरत जिले के सभी विधानसभा क्षेत्र में गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में 1 दिसंबर को मतदान होगा और 8 दिसंबर को मतगणना होगी।
सूरत में आप की मौजूदगी से त्रिकोणीय हुआ मुकाबला, जानें यहां के मतदाताओं के मुद्दे
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