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हजारों लोग भगवान जगन्नाथ के ‘नबजौबन दर्शन’ के साक्षी बने, 45 मिनट पहले शुरू हुआ अनुष्ठान

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हजारों भक्तों ने सोमवार को यहां पुरी श्रीमंदिर में ‘नबजौबन दर्शन’ के अवसर पर देवताओं – भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और भगवान जगन्नाथ के दर्शन किए। अनुष्ठान श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) द्वारा निर्धारित समय से 45 मिनट पहले सुबह आठ बजे के बजाय 7.15 बजे शुरू हुआ। एसजेटीए अधिकारी ने यह जानकारी दी। एसजेटीए के मुख्य प्रशासक रंजन कुमार दास ने संवाददाताओं को बताया कि टिकट खरीदने वाले लगभग 7,000 श्रद्धालुओं को ‘नबजौबन दर्शन’ के लिए मंदिर में प्रवेश करने का अवसर मिला।उन्होंने कहा कि आम जनता को बाद में सुबह 11 बजे तक देवताओं के दर्शन करने की अनुमति दी गई। उन्होंने बताया कि मंगलवार को होने वाले प्रसिद्ध रथ यात्रा के मद्देनजर अनुष्ठान के लिए मुख्य मंदिर के कपाट बंद कर दिए गए। ‘‘नबजौबन दर्शन’’ का अर्थ है देवी-देवताओं के युवा रूप का दर्शन। ‘स्नान पूर्णिमा’ के बाद देवी-देवताओं को 15 दिन के लिए अलग कर दिया जाता है। इसे ‘अनासारा’ (क्वारंटीन) कहा जाता है। पौराणिक मान्यता है कि ‘स्नान पूर्णिमा’ को अधिक स्नान करने से देवी-देवता बीमार हो जाते हैं और आराम करते हैं। ‘‘नबजौबन दर्शन’’ से पहले पुजारी विशेष अनुष्ठान करते हैं जिसे ‘नेत्र उत्सव’ कहा जाता है। इस दौरान देव प्रतिमाओं की आंखों को नए सिरे से पेंट किया जाता है। रंजन कुमार दास ने कहा कि देवताओं के दर्शन के लिए इंतजार कर रहे भक्तों को मंदिर के अंदर या बाहर कोई परेशानी नहीं हुई क्योंकि उनके लिए विशेष व्यवस्था की गई थी। 11 बजे के बाद किसी भी भक्त को मुख्य मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी, हालांकि उन्हें आंतरिक परिसर में घूमने और मंदिर परिसर में अन्य देवताओं के दर्शन करने की अनुमति थी। इस बीच, तीन रथ- भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष, भगवान बलभद्र के तालध्वज और देवी सुभद्रा के द्वर्पदलन को मंगलवार को श्री गुंडिचा मंदिर में देवताओं को ले जाने के लिए मंदिर के ‘सिंहद्वार’ (शेर द्वार या मुख्य द्वार) के सामने खड़ा किया गया है। देवता एक सप्ताह के लिए गुंडिचा मंदिर में रहते हैं। तीन रथों का निर्माण हर साल एक विशेष प्रकार के पेड़ों की लकड़ी से किया जाता है। परंपरा के अनुसार, इन्हें बढ़इयों का एक दल पूर्ववर्ती राज्य दासपल्ला से लाता है। ये बढ़ई वह होते हैं जिनके पास इसके लिए वंशानुगत अधिकार और विशेषाधिकार हैं।

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