हर्बल की आड़ में खराब उत्पादों से देश को वैश्विक स्तर पर काफी नुकसान होता है। कुछ कंपनियों की वजह से पूरे आयुष सिस्टम पर सवाल खड़े होने लगते हैं। ऐसे में गोवा के पणजी में चल रही विश्व आयुर्वेद कांग्रेस में हर्बल उत्पादों को लेकर कड़े कानून लागू होने की मांग उठी है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस मसले पर केंद्रीय आयुष मंत्रालय और भारत सरकार को संज्ञान लेना चाहिए और हर्बल उत्पाद निर्माता कंपनियों के लिए सख्त कानून होने चाहिए। इससे कोई भी अपनी मनमानी से भारत का नुकसान नहीं कर पाएगा। भारती विद्यापीठ के पंचकर्म विभागाध्यक्ष डॉ. संतोष चव्हाण ने कहा कि आयुर्वेद आधारित सौंदर्य उत्पादों की वैश्विक स्तर पर भारी मांग है। यह लगातार बढ़ती भी जा रही है लेकिन इसी के साथ ही प्रामाणिकता और गुणवत्ता का ध्यान रखना भी जरूरी हैं। इसके लिए देश को कड़े नियामक और गुणवत्ता नियम लागू करने चाहिए। साथ ही, आयुर्वेद को खराब कहने और उपभोक्ताओं को गुमराह करने से बचना चाहिए क्योंकि इससे भारतीय पारंपरिक वेलनेस सिस्टम और स्वास्थ्य उपायों की प्रतिष्ठा को नुकसान होगा। जर्मनी और सिंगापुर के अस्पतालों में एलोपैथी के साथ आयुर्वेद का उपचार भी मरीजों को दिया जा रहा है। ऑटोइम्यून बीमारियों के अलावा अर्थराइटिस, न्यूरोलॉजिकल बीमारियां, खिलाड़ियों को चोट और मांसपेशियों से जुड़ी परेशानियों का इलाज किया जा रहा है। सिंगापुर स्थित एशिया आयुर्वेद के वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. रविंद्र नाथन इंदुशेखर ने बताया, सिंगापुर और मलयेशिया के कई बड़े अस्पतालों में आयुर्वेद चिकित्सा से इलाज किया जा रहा है। पणजी में चार दिवसीय 9वीं विश्व आयुर्वेद कांग्रेस और आरोग्य एक्सपो में 53 देशों से स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर और पारंपरिक औषधीय पद्धतियों के विशेषज्ञ पहुंचे हैं। डॉ. संतोष चव्हाण ने साफ तौर पर कहा कि उन देशों के नियामक प्रणालियों का पालन करना भी जरूरी है जहां भारतीय उत्पादों को बेचा जाता है। वहीं आयुर्वेद अनुसंधान संस्थानों और कॉर्पोरेट क्षेत्र के बीच संबंध को मजबूत करना जरूरी है ताकि प्रमाणित निष्कर्षों के परिणाम लोगों के लाभ के लिए बाजार तक पहुंच सकें।
हर्बल की आड़ में खराब उत्पादों से देश की पहचान को नुकसान
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